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नृत्याध्यायः निजपावें भ्रमन्ती सा रथचक्रनिदर्शने । 85 जनसंघे निजं पार्श्वमायान्ती चान्यपार्श्वतः ॥१२॥
साधुवादे ध्वजेऽप्येषा दोलिता परिकीर्तिता। 86 चक्रायुध के अभिनय में सूचीमुख हस्त तर्जनी को घुमाते हए ऊध्र्वमुख कर देना चाहिए। घटादि सामग्री से सम्बद्ध चाक के आशय में उसे घुमाते हए अधोमख कर देना चाहिए। रथ के पहिए का प्रदर्शन करने में उसे अपने पार्श्व में घुमाना चाहिए। यदि जन-समूह का भाव दिखाना हो तो उसे अन्य पार्श्व से स्वपार्श्व में आते हुए प्रदर्शित करना चाहिए । माधुवाद और ध्वजा का भाव दर्शित करने में उसे कम्पित कर देना चाहिए।
ऋजुरूर्वा तु सैकत्वे श्वासे नासास्थिता मता। ..
ईषत्प्रकम्पितायान्तो कर्णान्तं कर्णभूषणे ॥८३॥ 87 एकता का भाव दिखाने के लिए उसे सीधा ऊपर की ओर रखना चाहिए और श्वास के आशय में नासिका पर अवस्थित करना चाहिए । कर्णभूषण का भाव दिखाने में उसे ईषत् कम्पन के साथ कान तक ले जाना चाहिए।
स्तवकेषु समाकुञ्च्य मनाक्कार्या प्रसारिता ॥४॥ यदि पुष्पादि स्तवकों (गुच्छों) का भाव प्रदर्शित करना हो तो उसे सिकोड़कर कुछ फैला देना चाहिए।
ऊर्ध्वाधः शीघ्रमायान्ती विद्युत्येषा स्मृताबुधः । 88
कुष्माण्डादिलतासूर्ध्वा भ्रमन्ती मण्डलाकृतिः ॥८॥ विद्वानों का अभिमत है कि विद्युत का भाव प्रदर्शित करने के लिए सूचीमुख हस्त को ऊपर से शीघ्रतापूर्वक नीचे आते हुए दिखाना चाहिए। यदि कुम्हड़े आदि लताओं का अभिनय करना हो तो उसे मण्डलाकार घुमाते हुए ऊपर की ओर ले जाना चाहिए।
चला किसलये तु स्याहीपे चाथोडुदर्शने । 89
ऋजुरूर्ध्वमुखो योज्यो भ्रमन्मण्डलिताकृतिः ॥८६॥ नवपल्लव तथा दीपक का भाव प्रदर्शित करने के लिए सूचीमुख हस्त को कम्पित कर देना चाहिए और तारों का भाव दिखाने के लिए उसे सीधे ऊर्ध्वमुख करके मण्डलाकार रूप में घुमा देना चाहिए।
पतनेऽधः पतन्कार्यो दंष्ट्राभिनयने पुनः । 90 मनाक् पार्श्वनतावेतावोष्ठप्रान्तगतौ करौ ॥८॥