________________
(किसी कार्य को) आरम्भ करने के अभिनय में सूचीमुख हस्त को स्वस्तिक मुद्रा में नीचे बगल में रखना चाहिए और पल्लव के भाव-प्रदर्शन में उसे नीचे घुमाकर मुख पर रखना चाहिए।
दूते ते ऊर्ध्वमुख्यौ तु समानाभिनये म(न) ते । 102
भानौ चन्द्रे च कर्तव्या भ्रमन्ती दक्षिणा बुधैः ॥६॥ दूत के अभिनय में दोनों सूचीमुख हस्तों को ऊर्ध्वमुख करके समान रूप से प्रदर्शित करना चाहिए । सूर्य और चन्द्रमा के अभिनय में उसे दाहिनी ओर घुमाना चाहिए, ऐसा विद्वानों का कथन है।
प्रतिद्वन्द्विनि ते स्यातामूर्वाग्रे प्रमुखे पुनः । 103
ऊर्ध्याधः पतिता कार्या प्रस्तुतेऽपि बुधैरियम् ॥१०॥ प्रतिद्वन्द्वी, अग्रगामिता और प्रमुखता के अभिनय में दोनों सूचीमुख हस्तों को ऊर्ध्वमुख करना चाहिए । प्रस्तुत वस्तु के भाव-प्रदर्शन में एक सूचीमुख हस्त को ऊपर उठा कर नीचे गिरा देना चाहिए, ऐसा बुद्धिमान् व्यक्तियों का कहना है।
विभक्त छेदने चैते योज्यते विच्युते उभे । 104 किसी वस्तु को विभक्त करने तथा काटने के अभिनय में दोनों सूचीमुख हस्तों को गिराकर प्रदर्शित करना चाहिए।
पुरोमुखी सूचिते सा मन्त्रणे मुखदेशगा ॥१०१॥ प्रणामेऽधःपतन्ती सा सूर्यास्ते वामपाश्वगा ।।
105 किसी सूचित वस्तु के अभिनय में सूचीमुख हस्त को अग्रमुख करके रखना चाहिए और मंत्रणा के अभिनय में उसे मुख पर अवस्थित करना चाहिए । प्रणाम करने के भाव में उसे नीचे गिराना तथा सूर्यास्त के आशय में बॉयी बगल में रखना चाहिए। _ विश्लिष्टे ते पराङमुख्यौ दक्षिणात्पार्श्वतोमते ॥१०२॥ . पाचव्यत्ययतो योज्ये निशान्ते तद्वदेव ते । 106
संयुक्ता तु सहाये स्यादथ रक्तप्रमोक्षणे ॥१०३॥ नृत्याचार्यों के मत से वियुक्त करने के अभिनय में दोनों सूचीमुख हस्तों को विमुख करके दाहिनी बगल में रखना चाहिए। रात्रि के अन्तिम भाग के प्रदर्शन में उसी प्रकार वियुक्त करके दाहिनी बगल में रखना चाहिए। मित्र या सहायक तथा रक्त निकालने के आशय में उन्हें संयुक्त करके रखना चाहिए।
७७