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नत्याध्यायः
अहमित्यादिनिर्देशे हृदयाभिमुखो मतः ।
व्यक्तः कुटलकेशेषु मुहुरुद्वेष्टितो बुधैः ॥११५॥ 119 'मैं' इत्यादि के निर्देश के अभिनय में त्रिपताक हस्त को हृदय के सम्मुख रखना चाहिए। विद्वानों का अभिमत है कि धुंघराले बालों के अभिनय में उसे चारों ओर से घिरा या मुड़ा हुआ प्रदर्शित करना चाहिए।
मुखान्तरित एष स्याद् व्याजेऽथानुप्रवेशने ।
चलाङगुलिरथाल्पेऽर्थे व्यावर्तितनतोन्नतः ॥११६॥ 120 छल-कपट तथा प्रवेश करने के अभिनय में उसे मुख के पास रखना चाहिए और अल्पता के अर्थ में उसकी उँगलियों को कम्पित करके उलटे, झके तथा उठे हए रूप में प्रस्तुत करना चाहिए।
कुले त्वयं नियोक्तव्य ऊर्ध्वाधश्चलदङ्गुलिः ।
संशये दधदगुल्यौ क्रमादेष नतोन्नते ॥११७॥ 121 कुल के अभिनय में उसकी उँगली को ऊपर-नीचे कम्पित करते हुए प्रयुक्त करना चाहिए। सन्देह के भावप्रदर्शन में उसकी दो उँगलियां क्रमश: नत और उन्नत होनी चाहिए ।
अनादरेऽधस्तल स्याद्वहिः क्षिप्ताङ्गुलिद्वयः ।
अलकापनयने स स्याद्भालादलकसंश्रितः ॥११८॥ 122 अनादर के अभिनय में त्रिपताक हस्त की हथेली नीचे की ओर तथा उसकी दो उँगलियाँ नीचे की ओर फेंकी हुई होनी चाहिए और केशों को हटाने के अभिनय में उसे ललाट पर केशों से सटा हुआ होना चाहिए।
-कुञ्चितागुलि (? को) भ्रमन् । उसकी उगलियों को मोड़कर घुमाते हुए [?]....।
मस्तकाच्चेद्भमत्यूवं तदा मुकुटधारणे । 123
तिलके स्यादूर्ध्वमेष भ्र वोर्मध्याल्ललाटगः ॥११६॥ मकट धारण करने के अभिनय में उसे मस्तक के ऊपर घमाना चाहिए। तिलक धारण करने के भाव-प्रदर्शन में उसे ऊपर भंवों के बीच से ललाट पर रखना चाहिए।
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