________________
हस्त प्रकरण
विकृते घोषवाग्गन्धे कर्णास्यघ्राणसंवृतिम् । 124
क्रमात्कुर्वन्नगुलिभ्यामथ(?धः)स्यात् कटिदेशतः (?गः) ॥१२०॥ विकार, शब्द, वाणी तथा गन्ध के भावाभिव्यंजन में दो उँगलियों से क्रमश: कान, मुख तथा नाक को ढकते हए त्रिपताक हस्त को नीचे कमर के हिस्से में रखना चाहिए । क्रमादधस्तिर्यगूवं क्षुद्रे स्रोतसि मारुते ।
125 तथाविधे खेचरे च दधदेष चलाङ्गुली ॥१२१॥ छोटे सोते, वायु तथा आकाशचारी जीवों के अभिनय में त्रिपताक हस्त की कम्पित उँगलियों को क्रमशः नीचे, तिरछे तथा ऊपर अवस्थित करना चाहिए। विच्युतानामिकाङ्गुष्ठसन्दंशोऽश्रुप्रमार्जने
____126 प्राकाशाभिनये तूर्ध्वमुखोऽथाधोमुखो भुवि ॥१२२॥ आँसू पोंछने के अभिनय में इस हाथ को अनामिका तथा अंगुष्ट उँगलियों को संडसी की तरह मोड़ कर नीचे लटका देना चाहिए । आकाश के अभिनय में इस हस्त को ऊर्ध्वमुख तथा भूमि के अभिनय में अधोमुख रखना चाहिए इतस्ततश्चलनेष
बालसर्पनिरूपणे । 127 बाहुशीर्षसमुत्थोऽयमूर्ध्वप्राप्ताङ्गुलिद्वयः ॥१२३॥ बालसूर्य के अभिनय में त्रिपताक हस्त को इधर-उधर चलाते हुए, दो उँगलियों को ऊपर करके बाँह तथा शिर पर रख देना चाहिए।
.. साग्निधूमे प्रयोक्तव्यो वक्रमार्गेष्वधोमुखः । 128
पुरश्चलन्नुच्चनीचभुव्यूर्वाधोमुखः करः ॥१२४॥ अग्नि तथा घूम और टेढ़े मार्गों के अभिनय में उसे अघोमुख करके प्रदर्शित करना चाहिए। ऊँचीनीची भूमि के भाव-प्रदर्शन में उसे आगे चलाते हुए ऊपर-नीचे कर देना चाहिए।
कुश्चिताङ्गुलिरेष स्यात्कर्णस्थश्चापकर्षणे । 129
बालेन्दुदर्शने कार्यः प्रसृताङ्गुष्ठसम्मुखः ॥१२५॥ धनुष को खींचने का भाव प्रदर्शित करने के लिए त्रिपताक हस्त को कान पर रखना चाहिए और उँगलियों को मोड़ लेना चाहिए । बालचन्द्र के अभिनय में उसके अंगुष्ठ को फैलाकर सामने रखना चाहिए।