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नृत्याध्यायः
अधोमुखी भवेद्वामा कुटिलायां गतौ पुनः ।
107 पाचदित्यन्तमसकृदन्यपार्श्वगता भवेत् ॥१०४॥ कटिल गति के अभिनय में बाँये सूचीमुख हस्त को अधोमुख करके एक बगल से दूसरी बगल में बार-बार तीव्र गति से संचालित करना चाहिए।
गेये शब्देऽपि कर्तव्या कर्णान्तिकगता बुधैः । 108 विद्वानों के अनुसार गायन और शब्द करने के अभिनय में सूचीमुख हस्त को कान पर रखना चाहिए।
भद्र परस्मिन् प्रथमे विवादेऽपि नियोजने ॥१०॥ रेखायां च निमित्तेऽपि मथनेऽस्मोति भाषणे । 109 नत्वैकदायतः सद्यस्तावदर्थेऽप्यसौ करः ।
योजनीयो यथोचित्यं हस्ताभिनयपण्डितैः ॥१०६॥ 110 कल्याण, दूसरे, प्रथम, विवाद, नियोजन, रेखा, निमित्त, मन्थन, 'मैं हूँ' ऐसे कथन, दण्डवत् प्रणाम और किसी वस्तु की सद्य: प्राप्ति आदि के अभिनय में नाट्याचार्यों के निर्देशानुसार सूचीमुख हस्त मुद्रा का यथाविधि विनियोग करना चाहिए। १५. त्रिपताक हस्त और उसका विनियोग
अनामिका पताकस्य यदा वक्रा प्रजायते ।
त्रिपताकस्तदा प्रोक्तोऽशोकमल्लेन भूभुजा ॥१०७॥ ll यदि पताक हस्त मुद्रा में अनामिका उंगली (के अगले दो पोरों) को झुका दिया जाय तो नृपति अशोकमल्ल के अनुसार उसे त्रिपताक हस्त कहा जाता है।
मङ्गल्यदधिदूर्वादिद्रव्यस्पर्श द्वयोरपि । त्रैगुण्येऽपि स्त्रियां तीरे पादयोश्चाथ शङ्किते ॥१०॥ 112 नतोन्नतागुलिरसौ चन्दने तु ललाटगः ।
पराङ्मुखः परित्राणेऽनुवादे कर्णदेशगः ॥१०॥ 113 दही, दूब आदि मांगलिक द्रव्यों के स्पर्श, दो वस्तुओं, तीन गुणों, स्त्री, तट, चरणों तथा आशंका के अभिनय में त्रिपताक हस्त की उँगलियाँ (मल से) झुकी तथा (अग्रभाग से) उठी हुई होनी चाहिए। चन्दन
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