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मूलगुणाधिकार १। अर्थ-ज्ञानके निमित्त पुस्तक आदि उपकरणरूप ज्ञानोपषि, पापक्रियाकी निवृत्तिरूप संयमके लिये पीछी आदिक संयमोपधि, मूत्रविष्ठा आदि देहमलके प्रक्षालनरूप शौचका उपकरण कमंडलू आदि शौचोपधि और अन्य सांथरे आदिके निमित्त उपकरणरूप अन्योपधि-इनका यत्नपूर्वक( देख शोधकर) उठाना रखना वह आदाननिक्षेपणसमिति कही जाती है ॥ १४ ॥
अब प्रतिष्ठापनासमितिका खरूप कहते हैं;एगंते अचित्ते दूरे गूढे विसालमविरोहे । उच्चारादिचाओ पदिठावणिया हवे समिदी॥१५॥ एकांते अचित्ते दूरे गूढे विशाले अविरोधे । उच्चारादित्यागः प्रतिष्ठापनिका भवेत् समितिः ॥१५॥
अर्थ-असंयमीजनके गमनरहित एकांतस्थान, हरितकाय त्रसकायरहित स्थान, दूर, छिपा हुआ, विल छेदरहित चौड़ा, और लोक जिसकी निंदा व विरोध न करें ऐसे स्थानमें मूत्र विष्ठा आदि देहके मलका क्षेपण करना (डालना ) वह प्रतिष्ठापनासमिति कही जाती है ॥ १५॥ ___ अब इन्द्रियनिरोधव्रतका खरूप कहते हैं;चक्खू सोदं घाणं जिब्भा फासं च इंदिया पंच । सगसगविसएहिंतो णिरोहियव्वा सया मुणिणा १६
चक्षुः श्रोत्रं घ्राणं जिह्वा स्पर्शश्च इन्द्रियाणि पंच । स्वकस्वकविषयेभ्यो निरोधयितव्या सदा मुनिना ॥ १६ ॥ अर्थ-चक्षु, कान, नाक, जीभ, स्पर्शन-इन पांच इन्द्रियोंको