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संक्रमकरण ]
शब्दार्थ - दुसु - दो में, वेगे – अथवा एक में, दिट्ठिदुगं - दर्शन मोहद्विक को, बंधेण विणावि – बंध के बिना भी, सुद्धदिट्ठिस्स - शुद्ध (सम्यग्) दृष्टि जीव, परिणामइ – परिणमित (संक्रमित) करता है, जीसे – जिस, तं – उसको, पगईए - प्रकृति में, पडिग्गहो – पतद्ग्रह (कहलाती है) एसा - वह प्रकृति।
गाथार्थ - शुद्ध (सम्यग्) दृष्टि जीव बंध के बिना भी दृष्टिद्विक को दो अथवा एक प्रकृति में संक्रमित करता है। उसे जिस प्रकृति में परिणमित (संक्रमित) किया जाता है वह पतद्ग्रह प्रकृति कहलाती है।
विशेषार्थ – शुद्ध दृष्टि – सम्यग्दृष्टि जीव के आधारभूत सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व में मिथ्यात्व का और एक सम्यक्त्व प्रकृति में सम्यग्मिथ्यात्व का बंध के बिना भी संक्रम होता है। जिसका आशय यह है कि बंध मिथ्यात्व का ही होता है, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व का बंध नहीं होता है। क्योंकि मदोत्पादक कोद्रव (कोदों - धान्य विशेष) के समान जो मिथ्यात्व पुद्गल हैं वे औषधि विशेष तुल्य औपशमिक सम्यक्त्व से अनुगत विशुद्धिस्थानों के द्वारा तीन रूप कर दिये जाते हैं, यथा – १ शुद्ध, २ अर्धविशुद्ध और ३ अशुद्ध। इनमें से शुद्ध पुद्गल सम्यक्त्व. प्रकृति, अर्धविशुद्ध पुद्गल सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति और अशुद्ध पुद्गल मिथ्यात्व प्रकृति रूप कहलाते हैं । इनमें से विशुद्ध सम्यग्दृष्टि जीव बंध के बिना भी मिथ्यात्व को सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व में और सम्यग्मिथ्यात्व को सम्यक्त्व प्रकृति में संक्रमित करता है। इस प्रकार संक्रम का सामान्य लक्षण जानना चाहिये।
अब जिन प्रकृतियों में अन्य प्रकृतिदलिक को संक्रमित करता है, उनकी संज्ञा को बतलाते हैं – परिणामेत्यादि अर्थात् आधारभूत जिस प्रकृति में अन्य प्रकृति स्थितदलिक परिणमित होते हैं आधारभूत प्रकृति रूप संपादित करती है वह आधारभूत प्रकृति पतद्ग्रह कहलाती है - यस्यां प्रकृती आधारभूतायां तत्प्रकृत्यन्तरस्थं दलिकं परिणमयति आधारभूतप्रकृतिरूपतामापादयति एषा प्रकृतिराधारभूता पतद्ग्रह इत्युच्यते। पतद्ग्रह के समान पतद्ग्रह अर्थात् संक्रम्यमाण प्रकृति के आधार को पतद्ग्रह कहते हैं - पतद्ग्रह इव पतद्ग्रह संक्रम्यमाणप्रकृत्याधार इत्यर्थः। संक्रम का अपवाद -
संक्रम का पूर्वोक्त लक्षण अतिप्रसक्त' अर्थात् सर्वत्र अव्याप्त है, इसलिये संक्रम के अपवाद को कहते हैं -
१.निर्धारित लक्षण सर्वत्र वस्तु में घटित न हो, उस लक्षण को अतिप्रसक्त अव्याप्त कहते हैं।