Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 1
Author(s): Vanshidhar Vyakaranacharya, Darbarilal Kothiya
Publisher: Lakshmibai Parmarthik Fund Bina MP
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शंका २ और उसका समाधान मंगलं भगवान् वीरो मंगलं गौतमो गणी । मंगलं कुन्दकुन्दार्यो जैनधर्मोऽस्तु मंगलम् ।।
शंका २ जीवित शरीरकी क्रियासे आत्मामें धर्म-अधर्म होता है या नहीं ?
प्रतिशंका ३ का समाधान
१. प्रथम-द्वितीय प्रश्नोत्तरोंका उपसंहार इस प्रश्नके प्रथम उत्तरमें हमने सर्वप्रथम यह स्पष्ट कर दिया था कि जीवित शरीरकी क्रिया पुद्गल द्रव्यकी पर्याय है, इसलिए उसका अजीव तत्त्वमें अन्तर्भाव होता है । यह न तो जीवका धर्मभाय ही है और न अधर्मभाव ही। दूसरी यह बात स्पष्ट कर दी थी कि इसको नोकर्ममें परिगणना की गयी है। अतएव जीवभावमें यह निमित्तमात्र बहो गयी है। किन्तु निमित्त कथन असद्भूत ब्यवहारनयवा विषय होनसे इस कथनको उपचरित हो जानना चाहिए।
किन्तु अपर पक्ष जीवित शरीरको क्रियाका अजीब तत्त्वमें अन्तर्भाव करनेके लिए तैयार नहीं है । इसका खुलासा करते हुए प्रतिशंका २ में उसका कहना है कि 'जीवित शरीरको सर्वथा मजीव तवमें मान लेने पर जीवित तथा मतक दारीरमें कुछ अन्तर नहीं रह जाता।' इस प्रतिशंकामें अन्य जो भी कथन हुआ है वह इसी आशयकी पुष्टि करता है ।
अतएव इसके उत्तरमें निश्चय-व्यवहार धर्मका स्वरूप बतलाकर हमने लिखा है कि शरीर और शरोरकी क्रिया एकत्र बुद्धि यह अप्रतिबुद्धका लक्षण है अतएव सम्यग्दृष्टि उससे धर्मको प्राप्ति नहीं मानता। अधर्मकी प्राप्ति भी उससे होतो है ऐसी भी मान्यता उसकी नहीं रहती। वह तो कार्यकालमें निमित्तमात्र है।
२. प्रतिशंका ३ के आधारसे विचार हमने प्रथम उत्तरमे ही यह स्पष्टीकरण किया है कि जीवित शरीरकी किया जीवका न धर्म है और न अधर्म ही । इसपर अपर पक्षका कहना है कि यह हमारे मूल प्रश्नका उत्तर नहीं है । समात्रान यह है कि यदि जीवित शरीरकी क्रियासे धर्म-अधर्मकी प्राप्ति स्वीकार की जाय तो उसे आत्माका धर्म-अधर्म मानना भी अनिवार्य हो जाता है । समयसारमें इन्ध और मोक्षके कारणोंका निर्देश करते हुए लिखा है
भावो रागादिजुदो जीवेण कदो दु बंधगो भणिदो।
रागादिविप्पमुक्को अबंधगो जाणगो. णवरि ॥१६७॥ जीवकृत रागादि युक्त भाव नये कर्मका बन्ध करानेवाला कहा गया है । किन्तु रागादिसे रहित भाव बन्धक नहीं है, वह मात्र ज्ञायक ही है ।।१६७११
इसी अभिप्रायको ध्यानमें रखकर मुक्ति और संसारके कारणोंका निर्देश करते हुए रत्नकरण्ठश्राधकाचारमें भी कहा है