Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 1
Author(s): Vanshidhar Vyakaranacharya, Darbarilal Kothiya
Publisher: Lakshmibai Parmarthik Fund Bina MP
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जयपुर (खानिया) तत्वचर्चा और उसकी समीक्षा
उत्तर अनावश्यक है।
एक बात यह भी है कि दोनों ही पक्ष उक्त नैमित्तिक सम्बन्धको व्यवहारतयका विषय मानते हैं । उसमें दोनों पक्षोंके मध्य कोई विवाद ही नहीं है। इस बातको उत्तर पक्ष भी जानता है । अतः उसे अपने उत्तरमें उसका निर्देश करना अनावश्यक है ।
यद्यपि इस विषय में दोनों पक्षोंके मध्य यह विवाद है कि जहां उत्तरपक्ष व्यवहारनयके विपयको सर्वथा अभूतार्थ मानता हूँ यहां पूर्वपक्ष उसे कथंचित् अभूतार्थ और कथंचित् भूतार्थ मानता है, परन्तु वह प्रकृत प्रश्न विषयसे भिन्न होनेके कारण उसपर स्वतन्त्र रूपसे ही विचार करना संगत होगा । अतएव इस पर यथावश्यक आगे विचार किया जायगा ।
दूसरी बात यह है कि द्रव्यकर्मके उदय और संसारी आत्माके विकारभाव तथा चतुर्गतिभ्रमण में दोनों पक्ष कर्म सम्बन्धको नहीं मानते हैं और मानते भी हैं तो उपचारसे मानते हैं। इस बात को भी उत्तरपक्ष जानता हूँ । अतः उसके द्वारा उसर में इसका निर्देश किया जाना भी अनावश्यक है ।
यद्यपि इस विषय में भी दोनों पक्षोंके मध्य यह विवाद है कि जहां उत्तरपक्ष उस उपचारको सर्वथा अभूतार्थ मानता है वहां पूर्वपक्ष उसे कथंचित् अभूतार्थ और कथंचित् भूतार्थं मानता है। इसपर भी यथाaure आगे विचार किया जायगा ।
यतः प्रसंगवश प्रकृत विषयको लेकर दोनों पक्षोंके मध्य विद्यमान मतैक्य और मतभेदका स्पष्टीकरण किया जाना तत्त्वजिज्ञासुओं को सुविधाके लिए आवश्यक है अतः यहां उनके मतैक्य और मतभेदका स्पष्टी - करण किया जाता है ।
मतैक्यके विषय
१. दोनों ही पक्ष संसारी आत्मा के विकारभाव और पतुर्गतिभ्रमण में द्रव्यकर्मके उदयको निमित्तकारण और संसारी आत्माको उपादानकारण मानते हैं ।
२. दोनों ही पक्ष मानते हैं कि उक्त विकारभाव और चतुर्गतिभ्रमण उपादानकारणभूत संसारी आमाका ही होता है । निमित्तिकारणभूत उदयपर्याय विशिष्ट प्रकर्मका नहीं होता ।
३. दोनों ही पक्षोंकी मान्यतामें उक्त कार्यका उपादानकारणभूत संसारी आत्मा यथार्थ कारण और मुख्य कर्ता है च निमित्तकारणभूत उदयममय विशिष्ट द्रव्यकर्म अयथार्थ कारण और उपचारित कर्ता है |
४. दोनों ही पक्षका कहना है कि उक्त कार्यके प्रति उपादानकारणभूत संसारी आत्मामें स्वीकृत उपादानकारणता, यथार्थकारणता और मुख्यकर्तृत्व निश्चयनयके विषय हैं और निमित्त कारणभूत उदयपर्याय विशिष्ट द्रव्यकर्म में स्वीकृत निमित्तकारणता, अयथार्थकारणता और उपचरितकर्तृस्व व्यवहारनय के विषय हैं ।
मतभेदके विषय
१. यद्यपि दोनों ही पक्ष प्रकृत कार्यके प्रति उपादानकारणरूपसे स्वीकृत संसारी आत्माको उस कार्यरूप परिणत होनेके आधारपर कार्यकारी मानते हैं, परन्तु जहाँ उत्तरपक्ष उसी कार्यके प्रति निमित्त कारणरूपसे स्वीकृत उदयपर्यागविशिष्ट द्रव्यकर्मको उस कार्यरूप परिणत न होने और उपादानकारणभूत संसारी आत्माकी उस कार्यरूप परिणति में सहायक भी न होनेके आधारपर सर्वथा अकिंचित्कार मानता है।