Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 1
Author(s): Vanshidhar Vyakaranacharya, Darbarilal Kothiya
Publisher: Lakshmibai Parmarthik Fund Bina MP
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शंका-समाधान १ की समीक्षा
सहावक होने रूपसे कार्यकारी माना गया है । इसके विपरीत उत्तरपक्षका कहना है कि उपादानकारणभूत वस्तुकी कार्यरूप परिणति निमित्तकारणभूत बस्तुको उपस्थितिम तो होती है, परन्तु उसमें उस निमित्त. कारण कामा सहाया होलोर से तो नहीं हो। 17 ह निमित्त कारणभूत वस्तु वहाँ कार्यकारी नहीं होकर सर्वथा अकिंचिकर ही बनी रहती है।
(३) पूर्वपक्षका कहना है कि यद्यपि उपादानकारणभूत वस्तु के कार्यरूप परिणत होनेसे उस उपादानभूत वस्तुके साथ कार्यका तादात्म्य संबंध होता है और निमित्तकारणभूत वस्तु के उपादानको कार्य रूप परिणतिमें सहायक होनेरो निमित्तभृत वस्तुका उपादानके साथ संयोग संबंध होता है। तथा जिस प्रकार कार्यरूप परिणत होनेके आधारपर कार्य प्रति उपादानकारणभत यस्तमें स्वीकृत कारणता वास्तविक है उसी प्रकार उपाधानकारणभूत वस्तुकी उस कार्यरूप परिणतिमें सहायक होनेके आधारपर कार्यके प्रति निमिसकारणभत बस्तमें स्वीकत कारणता भी वास्तविक है, कल्पनारोपित नहीं है। हो, कार्यके प्रति उपादानकारणभूत वस्तुमें कार्यरूप परिणत होनेके आधार पर स्वीकृत कारणता और निमित्तकारणभूत वस्तुमें उपादानके कार्य के प्रति सहायक होनेके आधारपर स्वीकृत कारणता दोनों अपने-अपने ढंगसे वास्तविक होते हुए भी उपादानकारणभूत वस्तू के साथ कार्यका तादात्य संबंध रहने के कारण उसमें (उपादामकारणभत वस्तुमें) विद्यमान कारणता स्व-पताके आधारपर निश्चयरूप होनेसे निश्चयनयका विषय होती है और निमित्तकारणभूत वस्तुके साथ कार्यका संयोग सम्बन्ध रहने के कारण उसमें (निमित्तकारणभूत वस्सुमें) विद्यमान कारणता पररूपताके आधारपर व्यवहाररूप होनेसे व्यवहारनयका विषय होती है। इसके विपरीत उत्तरपक्षका कहना है कि यतः उपादानकारणभूत वस्तु कार्यरूप परिणत होती है अतः उसके साथ कार्यका तादारम्य सम्बन्ध निश्चित होता है और निमित्त कारणभूत वस्तु कार्यरूप परिणत नहीं होती व उपादानकारणभूत वस्तुको कार्यरूप परिणतिमें सहायक भी नहीं होती, केवल उपादानकारणभूत वस्तुकी कार्यरूप परिणतिफे अवरारपर उपस्थित मात्र रहा करती है, अतः निमित्तकारणभूत वस्तुके साथ उपादानगत कार्यका संयोग सम्बन्ध निश्चित होता है। इस तरह कार्य के प्रति उपादानकारणभूत और निमित्तकारणभूत दोनों वस्सुओं में इतना अन्तर रहने के कारण यह निर्णीत होता है कि जिस प्रकार तापारम्प सम्बन्ध होनेसे कार्यके प्रप्ति उपादान कारणभूत वस्तु स्वीकृत कारणता कार्यरूप परिणत होनेके आधारपर वास्तविक है उसी प्रकार संयोग सम्बन्ध होनेसे कार्य के प्रति निमित्तकारणभूत वस्तुमें स्वीकृत कारणता कार्यरूप परिणत न होने व उपादानकारणभूत वस्तु की वायुरूप परिणतिमें सहायक भी न होनेके आधारपर कल्पनारोपित मात्र सिद्ध हो जानेसे वास्तविक नहीं है। अतएव कार्यवे प्रति उपादानकारणभूत वस्तुमें स्वीकृत कारणता उपर्युक्त प्रकार वास्तविक होने के कारण निश्चयरूप हो जानेसे निश्चयनयका विषय होती है और उसी कार्यके प्रति निमित्तकारणभूत प्रस्तुभे स्वीकृत कारणता उपयुक्त प्रकार कल्पनारोपित मात्र होनेके कारण व्यवहाररूप हो जानेसे व्यवहारनयका विषय होती है ।
(४) पूर्वपक्षका कहना है कि यतः उपादानकारणभूत वस्तु कार्यरूप परिणत होती है अतः उस वस्तुमें और कार्यमें द्रव्यप्रत्यासत्ति रहा करती है और निमित्तकारणभत वस्तु उक्त कार्यरूप परिणत न होकर उस कार्यरूप परिणत होनेवाली उपादानकारणभत बस्सूकी उस कार्यरूप परिणतिम सहायक मात्र होती है, अतः उस वस्तुमें और उपादानगत उस कार्यमें कालप्रत्यासत्ति रहा करती है । यतः निमित्त प्रेरक और खासीन दो प्रकार के होते हैं और उपादानकी कार्थरूप परिणतिमें सहायता रूप कार्य भी पृथक-पृषक् होता है अतः