Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 1
Author(s): Vanshidhar Vyakaranacharya, Darbarilal Kothiya
Publisher: Lakshmibai Parmarthik Fund Bina MP
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शंका-समाधान ४की समीक्षा
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शुभ प्रवृत्तिरूप परिणमन होते हैं वे भी क्रमशः देशविरति या सर्वपिरति रूप व्यवहारसम्पचारित्रके रूपमें व्यवहारधर्म है।
इस विवेचनसे सिद्ध होता है कि उक्त सभी व्यवहारधर्म यथायोग्य जीवकी भाववती अथवा क्रियावती दोनों प्रकारकी शक्तियोंके परिणमन होने के कारण सदृभूतव्यवहारधर्मके रूपमें सद्भसध्यवहारनयके विषय है। तथा जीवकी भाववती शक्तिको परिणमनस्वरूप व्यवहारपर्म यतः उदय अथवा मस्तिष्कके सहारेपर होते है व जीवकी क्रियावती शस्तिके परिणामस्वरूप व्यवहारधर्म यतः मन, वचन और कायके सहारेपर होते हैं, अतः उत्पत्तिमै पराश्रित हो जानेसे के सभी व्यवहारधर्म अनुपचारित असद्भुतव्यवहारधर्मके रूपमें अनुचरितअसदभूतव्यवहारनयके विषय है। इतना ही नहीं, व्यवहारसभ्यम्दर्शन और व्यवहारसम्परज्ञान रूप दोनों व्यवहारधर्म जीवादि बाह्य पदार्थोके प्रधान और ज्ञानरूप होनेसे तथा व्यवहार सम्यक चारित्ररूप व्यवहारधर्म पंचेद्रियोंके विषयभूत बाह्य पदाथोंके त्यागरूप होनेसे यथायोग्यरूपमें बाध पदार्थोके सापेक्ष होनेसे वे सभी व्यवहारधर्म उपचरितमसद्भूतव्यवहारधर्मके रूपमें उपचरितअसद्भूतव्यवहारनयके भी विषय है।
इस तरह उक्त सभी व्यवहारश्रम जीवकी यथायोग्य भाववती अथवा क्रियावती शक्तियों के परिणमन होनेसे यतः जीवके ही परिणमन है, अतः उनका जीवक्री भाववती शक्तिका परिणमन होनेसे जीवके परिणामस्वरूप निश्चयधर्मके साथ स्वीकृत साध्व-साधकभाव अनुपचारित सदभूत व्यवहारके रूपमें अनुपरितस तव्यवहारनयका विषय हो जाता है व उनका जीवकी भावबती शक्तिका परिणमन होनेसे जीवके परिणामनस्वरूप मोक्ष के साथ स्वीकृत साध्य साधक भाव उपचरितसद्भूतव्यवहारके में उपचरितसद्भूतव्यवहारनयका विषय हो जाता है, ऐसा जानना चाहिए ।
इस विषयको उदाहरणके आधारगर इस तरह समझा जा सकता है कि घटकार्य तो एक है, परन्तु वह उपादानकारणभूत मिद्रीकी अपेक्षा उपादेय है और उसकी उत्पत्तिमें जिन मुख्य अघवा पर्यायरूप निमत्तोंकी सहायता आवश्यक है उनकी अपेक्षा वह नैमित्तिक भी है। इतना ही नहीं, निमित्तोंकी विविधरूपताके आधारपर बटकी वह नैमित्तिकता विविध रूपताको भी धारण किये हुए है। यतः उपादानकारणभूत मिट्टी घटरूप परिणत होती है अतः वह घटकी उत्पत्ति में निश्चयकारण है। तथा वह मिट्री क्रमशः स्थास, कोश और कुशूलरूप परिणत होतो हुई ही घटरूप परिणत होती है, अतः घटको उत्पत्तिमें मिट्टीको वे स्थास, कोश और कुशूल पर्यायें सद्भुतन्यवहारकारण है। इतना ही नहीं कुशूलपर्याव घटसे अव्यवहित पूर्वकालवर्ती पर्याय होमेसे घटोत्पत्ति में साक्षात् सद्भूतव्यबहारकारण होनेसे अनुपचरितसद्भूतव्यवहारकारण है । कोपर्याय शलपर्यापसे अव्यवहित पूर्वकालवी पर्याय होनेसे घटोत्पत्तिमें परम्परया व्यबहारकारण होनेसे उपचरितराभूतत्र्यवहारकारण है और स्थासपर्याय कोशपायसे अव्यवहित पूर्वकालवर्ती पर्याय होनेसे घटोत्पत्तिमें दुहरी परम्पराक रूपमें रादतव्यवहारकारण होनेसे उपचरितोपचरितसद्भत व्यवहारकारण है । फलतः घटोत्पत्तिके प्रति मिट्टी में विद्यमान निश्चयकारणता निश्चयनयका विषय होती है। कुशलपर्यायमें विद्यमान अनुपरितसद्भूतव्यवहारकारणता अनुपचरितसद्भूतव्यवहारनयका विषय होती है। कोशपर्यायमें विद्यमान उपचरितसदृभतव्यवहारकारणता उपचरितसद्भुतव्यबहारनयका विषय होती है और स्थासपर्यायमें विद्यमान उपचरितोपचरितसद्भतव्यवहारकारणता उपचरितोपचरितसद्भुतव्यवहारनयका विषय होती है। इसी तरह इस अवस्थाके आधारपर घटकार्यमें उपादानकी अपेक्षा