Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 1
Author(s): Vanshidhar Vyakaranacharya, Darbarilal Kothiya
Publisher: Lakshmibai Parmarthik Fund Bina MP
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________________ शुद्धिपत्र पंक्ति शुद्धि भाववती पामारके 3 275 276 25 21 चतुर्दश ~ 'ওও 5 277 277 278 28. ર૫ 23 अशुद्धि भावती आधारके चतुर्थदश चतुर्थदश चतुर्थदश निश्चयधर्मका पूर्णतः (तटस्थ) दर्शनचेतनाके वह वह मोक्षमार्गकी प्रथम यदि जबतक भव्य और परिणामस्वरूप दृश्य परिणामस्वरूप मन जीव मिट्टीकी ही उपदेश कर्ता सभामण्डल वितात्मक 21 28 286 287 290 290 चतुर्दश चतुर्दश निश्चयधर्म की पूर्णता (तटस्थता) जानचेतनाक वह भी मोक्षमार्ग मोक्षकी xxx कि यदि जबतक जीव अभव्य और परिणमनके रूपमें हृदय परिणमनके रूपमें मन जीवमें मिट्टीकी ही परिणति उपदेश करता सभामण्डप वितकात्मक 30 24