Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 1
Author(s): Vanshidhar Vyakaranacharya, Darbarilal Kothiya
Publisher: Lakshmibai Parmarthik Fund Bina MP
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शुद्धिपत्र
पंक्ति
अशुद्धि
१७१
मान्यताकी क्रियामें ही स्वपप्रत्यय इस रूपमें
१७१ १७२
१७३
१७३
योग्यता अपरपक्षका योग्यता' ही ज्ञात होता है
१७४ १७५ १७५
जिसे
१७५
२५
१७७
पुद्धि मान्यताको उत्तरपक्षका क्रियामें स्वपरप्रत्यय इस रूपमें परमार्थ मूत न होकर भी एक द्रव्यको क्रियामें दूसरा द्रश्य सहायक होता है इस रूपमें योग्यताकी अनुरूपता उत्तरपक्षका योग्यताको अनुरूपता हो यही ज्ञात होता है जिससे. सिद्ध करना है शक्तिको xxx दिया है xxx पुद्गलका ही फर्मरूप स्व-रूप करना करना अयथार्थ कारण और वह पुद्गल व्रख्यकी क्रियापरिणाम हो जाता है पथको अवलम्जन लेते है भाववती या क्रियावती शक्तिका शक्तिका वाचनिक सहयोगसे जीवकी भाववती शारीर और सामान्य समीक्षाके तथा
सिद्ध करता है शक्ति अर्थात दिया जाता है (स्वतःसिद्ध) पुद्गलका कर्मरूप ही स्वरूप कुछ करना कुछ करना यथार्थ कारण
और पुद्गल द्रव्यको क्रियारूप परिणाम जाता है पदको अवलम्बन तो लेते हैं भाबचती शक्तिका पाक्तिका मानसिक, वावनिक सहयोगसे होनेवाली जीवको भानबत्ती शरीर सामान्य समीक्षाके मूलका सम्यमिथ्यादर्शन और निश्चयसम्यग्दिर्शन
१८२ १८५ १८६ १८९
१९२
३५ १८ ३२
२०१
२०२
२०२ २०४ २०५ २०५
२०५
२०८
सम्पम्मिथ्यादर्शन और निश्चयसम्बग्दर्शन