Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 1
Author(s): Vanshidhar Vyakaranacharya, Darbarilal Kothiya
Publisher: Lakshmibai Parmarthik Fund Bina MP

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Page 392
________________ शंका-समाधान २ को समीक्षा ४. प्रश्नोंत्तर २ के तुतीय बौरकी समीक्षा तृतीय दौर में पूर्वपक्षकी स्थिति पूर्वपक्षने आने तृतीय दौरमें सर्वप्रथम यह स्पष्ट किया है कि उत्तरपक्षने अपने उत्तरमें हमारे प्रश्नका उत्तर नहीं दिया है। इसके पश्चात् उसने उत्तरपक्षके द्वितीय दौरकी सामग्रीकी आगम प्रमाणोंके आधारपर आलोचना करते हा आगम प्रमाणों के आधारपर ही यह सिद्ध करनेका प्रयत्न क्रिया है कि जीवित शरीरकी क्रियासे आत्मामें धर्म-अधर्म होता है । तृतीय दौरमें उत्तरपक्षका प्रारम्भिक कथन और उसकी समीक्षा उत्तरपक्षने अपने तृतीय दौर में त० च०प० ८५ पर सर्वप्रथम 'प्रथम और द्वितीय प्रश्नोत्तरोंका उपसंहार' शीर्षकसे अन्तर्गत अपने प्रथम और द्वितीय दोनों दौरोंकी सामग्रीको संगति बिठलानेका प्रयत्न किया है जो निम्न प्रकार है : (१) 'इस प्रश्नके प्रथम उत्तरमें हमने सर्वप्रथम यह स्पष्ट कर दिया था कि जीवित शरीरकी क्रिया पदगल द्रश्यकी पर्याय है इसलिये उसका अजीव तत्त्वमें अन्तर्भाव होता है। वह न तो जीवका धर्मभाव है और न अधर्मभाव ही। दूसरी यह बात स्पष्ट कर दी थी कि इसकी नोकर्मम परिगणना की गई हैं। अतएव जीवभावमें यह निमित्त मात्र कही गई है। किन्तु निमित्त कथन असदभत्त व्यवहारनयका विषय होने से इस कथनको उपचरित ही आनना चाहिए।' (२) "किन्तु अपरपक्ष जीवित शरीरकी क्रियाका भजीव तत्वमें अन्तर्भाव करने के लिए तैयार नहीं है । इसका खुलासा करते हुए प्रतिशंका २ में उसका कहना है कि 'जीवित शरीरको सर्वथा अजीव तत्त्वमें मान लेनेपर जीवित तथा मृतक शरीरमें कुछ अन्तर नहीं रह जाता' इस प्रतिशंकामें अन्य जो कुछ भी कथन हुआ है वह इसी आशयकी पुष्टि करता है।" (३) 'अतएव इसके उत्तरमें निश्चय-व्यवहार धर्म का स्वरूप बसलाकर हमने लिखा है कि शरीर शरीरकी क्रियामें एकत्व बुद्धि यह अप्रतिबुद्धका लक्षण है। मतएव सम्यग्दृष्टि इससे धर्मको प्राप्ति नहीं मानता । अधर्मकी प्राप्ति भी उससे होती है ऐसी भी मान्यता उसकी नहीं रहती। वह तो कार्यकालमें निमित्त मात्र है।' उत्तरपक्षके इन तीनों अनुच्छेदोंकी समीक्षामें मेस मात्र' इतना ही कहना है कि यदि उत्तरपक्ष मेरे प्रकृत प्रपनोत्तरकी सामान्य समीक्षाक प्रश्रम और प्रितीय दोनों दौरोंकी समीक्षाक कथनोंपर ध्यान देता है तो उसे अपनी प्रकृत विषय सम्बन्धो भूतका पता हो सकता है। इसलिये इस विषयमें मुझे यहाँपर अब कुछ कहना शेष नहीं है। उत्तरपक्षने अपने प्रथम और द्वितीय प्रश्नोत्तरोंका उपसंहार' शीर्षक के अन्तर्गत उक्त कथनके आगे 'प्रतिशंका तीनके आधारसे विचार' शीर्षकसे पूर्वपक्षके तृतीय दीरकी सामग्रीकी आलोचना करते हुए अपने मन्तव्यके समर्थनमें जो कुछ लिखा है उसकी समीक्षा यहाँ यथाक्रमसे की जाती है।

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