Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 1
Author(s): Vanshidhar Vyakaranacharya, Darbarilal Kothiya
Publisher: Lakshmibai Parmarthik Fund Bina MP
View full book text
________________
शंका-समाधान ३ की समीक्षा सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्प्रकृतिरूप तीन तथा चारित्रमोहनीयकर्मये प्रथम भेद अनन्तानुबन्धी कषायकी नियमसे विद्यमान क्रोध, मान, माया और लोमरूप चार इस तरह सात कर्मप्रकृतियोंका उपशम, क्षय या क्षयोपशमके रूपमें संघर और निर्जरण किया करते हैं। इसी तरह चतुर्थ गुणस्थानसे लेकर आगेंके गुणस्थानोंमें विद्यमान जीव भी यथायोग्य कर्मोंका मानव और बन्ध तथा यथायोग्य कमौका संबर और निर्जरण किया करते है । उपर्युषत विवेचनका फलितार्थ .
) कोई अभव्य और भव्य मिश्यादष्टि जीव संकल्पीपापमय अश्यारूप अशुभ प्रवृत्ति ही किया करते है । अथवा संकल्पीपापमय अदयारूप अशुभ प्रवृत्ति के साथ सांसारिक स्वार्थवश पुण्यमय दयारूप शुभ प्रवृत्ति भी किया करते हैं। कोई अभव्य और भव्य मिध्यादृष्टि जीव संकल्पीपापमय अदयारूप अशुभ प्रवृत्ति के साथ पुण्यमय दयारूप शुभ प्रवृत्तिको कर्तव्यवश किया करते हैं। कोई अभश्च और भव्य मिथ्यादृष्टि जीव संकल्पीपापमय अदयारूप अशुभ प्रवृत्तिके सर्वथा त्यागपूर्वक आरम्भीपापमय अदयारूप शुभ प्रवृत्तिके साथ कर्तव्यवश पुण्यमय दयारूप शुभ प्रवृत्ति किया करते हैं एवं कोई अभय और भव्य मिथ्यादष्टि जीब संकल्पोपापमय अदयारूप अशुभ प्रवृतिके सर्वया व आरम्भीपापमय मदयारूप अशुभ प्रवृत्तिके एकदेशा अथवा सर्वदेश त्यागपूर्वक कर्तव्यवश पुष्यमव दयारूप शुभ प्रवृत्ति क्रिया करते हैं ।
(२) कोई सासादनसम्यग्दृष्टि जीव सामान्यरूपसे संकल्पीपापमय अदयारूप अशुभ प्रवृत्तिके साथ पूर्वसंस्कारके बलपर कर्तव्यवश पुग्यमय दयारूप शुभ प्रवृत्ति किया करते हैं। कोई रासादनसम्यग्दृष्टि जीव पूर्वसंस्कारके बलपर संकल्पीपापमय अदयारूप अशुभ प्रवृत्तिसे सर्वथा निवृत्तिपूर्वक आराम्भीपापमय अदयारूप अशुभ प्रवृत्ति के साथ कर्तव्यवश पुण्यमय दयारूप शुभरूप शुभ प्रवृत्ति किया करते हैं और कोई सासादन सम्यग्दृष्टि जीक पूर्वसंस्कारवश संकल्पीपापमय अदयारूप अशुभ प्रवृत्तिसे सर्वथा व आरम्भीपापरूप अदयारूप अशुभ प्रवृत्ति से एकदेश अथवा सर्वदेवा निवृत्तिपूर्वक कर्त्तव्यवश पुण्यमय दयारूप शुभ प्रवृत्ति किया करते हैं । परन्तु सासादनसम्यन्दृष्टि जीवकी यथायोग्य ये सब प्रवृत्तियाँ अबुद्धिपूर्वक ही हुआ करती हैं।
(३) सम्यग्मिध्यादृष्टि जीव यद्यपि भत्र्य मिध्यादृष्टि और सासादनसम्पादष्टि जीवोंके समान ही प्रवृत्ति किया करते हैं परन्तु उनमें इतनी विशेषता है कि वे संकल्पीपापमय अदयारूप अशुभ प्रवृत्ति किसी भी रूपमें नहीं करते हैं। तथा सम्यग्मिध्यादृष्टि जीवकी भी प्रवृत्तिा सासादन सम्यग्दृष्टि जीवके समान अबुद्धिपूर्वक ही हुआ करती हैं।
(४) चतुर्थ गुणस्थानमें लेकर आगेके गुणस्थानोंमें विद्यमान सभी जीव संकल्पीपापमय अदयारूप अशुभ प्रवृत्तिसे सर्वथा रहित होते हैं । इस तरह चतुर्थ गुणस्थानवी जीव या तो अशक्तिवश आरम्भीपापमय बदयारूप अशुभ प्रभृत्ति के साथ कर्त्तव्यवश पुण्यमय दयारूप शुभ प्रवृत्ति किया करते हैं अथवा आरम्भीपापमय अदयारूप अशुभ प्रवृत्ति से एकदेवा या सर्वदेश निवृत्तिपूर्वक कर्तव्यवश पुण्यमय दयारूप शुभ प्रवृत्ति किया। करते हैं।
(५) पंचम गुणस्थानवर्ती जीव नियमसे आरम्भीपापमय अदयारूप अशुभ प्रवृत्तिसे एकदेश निवृति
रूप शुभ प्रबत्ति किया करते हैं, क्योंकि ऐसा किये बिना जीवको पंचम गुणस्थान कदापि प्राप्त नहीं होता है । इतना अवश्य है कि कोई पंचम गुणस्थानवर्ती जीव आरम्भीपापमय अदयारूप अशुभ प्रवृत्तिसे सर्वदेश निवृत्तिपूर्वक भी कर्त्तव्यबश पुण्यमय दयारूप शुभ प्रवृत्ति किया करते हैं ।