Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 1
Author(s): Vanshidhar Vyakaranacharya, Darbarilal Kothiya
Publisher: Lakshmibai Parmarthik Fund Bina MP
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अयपुर (खानिया) तत्त्वचर्चा और उसकी समीक्षा मोक्षके साक्षात्कारणमत निश्चयमोक्षमार्गकी उत्पत्तिमें साक्षात कारण होनेसे उसे परम्परया मोक्षका कारण कहना अयुक्त महीं है । इस विषयको प्रश्नोत्तर एककी समीक्षासे भी समझा जा सकता है।
उत्तरपक्षने पंचास्तिकाय गाथा १०५ की आचार्य जयसेन कृत टीकाके आधारपर और बृहद्रव्यसंग्रहको टीका पृष्ठ २०४ के कथनके आधारपर व्यवहारधर्मको परम्परया मोक्षका साधन मानकर भी उसके अभिप्रायको उलट-पुलट करनेकी चेष्टा की है और अपनी इस बातको उचित सिद्ध करने के लिए उसने पण्डितप्रवर टोडरमलजीके मोक्षमार्गप्रकाशकका निम्न कथन उपस्थित किया है
“सम्यग्दृष्टिक शुभोपयोग भये निकट शुद्धोपयोग प्राप्ति होय ऐसा मुख्यपना करि कहीं शुभोपयोगकों शुशोपयोगका कारण भो कहिये है।" पृ. ३७७ दिल्ली संस्करण ।
इसके विषय मेरा यह कहना है कि इस कथनका भो यही अभिप्राय राहण करना उचित है कि शुभोपयोगके अनन्तर ही शुद्धोपयोग प्राप्त होता है. अमुशोगयोगः नन्तर शुद्धोपयोगकी प्राप्ति कदापि सम्भव नहीं है । इस तरह इस कथनसे शुभोपयोग और शुद्धोपयोग; साध्य-साधकभावकी ही सिद्धि होती है । मोक्षमार्गप्रकाशकके उक्त कथनमें जो 'कहीं पदका पाठ है उसका आशय यह है कि शुभोपयोग शुखोपयोगका कारण सर्वत्र नहीं होता है। व्यवहारमोक्षमार्ग मोक्षका परम्परया कारण क्यों है, इसका स्पष्टीकरण भी सामान्य समीक्षामें किया गया है।
उत्तरपक्षने त. च. पु. १३२ पर ही आगे लिखा है कि "वस्तुतः मोक्षमार्ग एक ही है। उसका निरूपण दो प्रकारका है। इसलिये जहाँ निश्चय मोक्षमार्ग होता है वहाँ उसके साथ होनेवाले व्यवहारधर्मरूप रागपरिणामको व्यवहार मोक्षमार्ग आगममें कहा है और यतः वह सहचर होनेसे निश्चय मोक्षमार्गके अनुकूल है, इसलिये उपचारसे निश्चय मोक्षमार्गका साधक भी कहा है।" अपने इस कथनके समर्थन में भी उत्तरपक्षने श्री पं० टोडरमलजीके निम्न कथनको उपस्थित किया है
"जहाँ सांचा मोक्षमार्गको मोक्ष मार्ग निरूपण सो निश्चय मोक्षमार्ग है और जहाँ जो भोक्षमार्ग तो है नाहीं परन्तु मोजमार्गका निमित्त है व सहचारी है ताकी उपचार करि मोक्षमार्ग कहिये सो व्यवहार मोक्षमार्ग है। जात निश्चय व्यवहारका सर्वत्र ऐसा ही लक्षण है। सांचा निरूपण सो निश्चय, उपचार निरूपण सो व्यवहार, तात निरूपण अपेक्षा दोय प्रकार मोक्षमार्ग जानना । एक निश्चय मोक्षमार्ग है. एक व्यवहार मोक्षमार्ग है ऐसे दोय मोक्षमा मानना मिथ्या है। बहरि निश्चय व्यवहार दोऊनि उपादेय मानें है सो भी भ्रम है। जात निश्चय व्यवहारका स्वरूप तो परस्पर विरोध लिए है। मोक्षमार्गप्रकाशक पु० ३६५-३६६ देहली संस्करण"।
इस सम्बन्धमें मेरा कहना है कि उत्तरपक्षका मोक्षमार्गको एक कहना और दो मोक्षमार्गोका निषेध करना इस रूपमें विवादकी वस्तु नहीं है। यदि कोई ऐसा माने कि एक व्यक्ति तो व्यवहारमोक्षमार्गनिरपेक्ष निश्चयमोक्षमार्गसे मोक्ष प्राप्त कर सकता है और दूसरा व्यक्ति निश्चयमोक्षमार्गनिरपेक्ष व्यवहारमोक्षमार्गसे मोक्ष प्राप्त कर सकता है, तो उसका ऐसा मानना मिथ्या है । परन्तु पूर्वपक्षका तो आगमके आवारपर यही कहना है कि जीयको भोक्षकी प्राप्ति निश्चयमोक्षमार्गकी प्राप्ति होनेपर ही होती है। किन्तु निश्चयमोक्षमार्गकी प्राप्ति जीवको तभी संभव है जब वह व्यवहारमोक्षमार्गपर आरूढ़ हो जाये। इससे ही यह निर्णीत होता है कि व्यवहारमोक्षमार्ग निश्चयमोक्षमार्गका साक्षात् साधक है और मोक्षका