Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 1
Author(s): Vanshidhar Vyakaranacharya, Darbarilal Kothiya
Publisher: Lakshmibai Parmarthik Fund Bina MP
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जयपुर (खानिया) तर्चा और उसकी समीक्षा
दिन दो
उनके विषयको अलग-अलग मानना चाहता है । इसका हमें आश्चर्य है। वस्तुतः कालनय और अकालनय ये दोनों नय एक एक ही अन्तर है तो इतना ही कि कालनय कालकी मुख्यतासे उसी नर्थको विषय करता है और अकालनय कालको गौण कर अन्य हेतुओं की मुख्यतासे उसी अथकी विषय करता है। यहाँ अकालका अर्थ है कालके सिवाय अन्य हेतु | इसी अभिप्रायको ध्यान में रखकर तत्त्वार्थ सूत्र में अर्पितानर्पित सिद्ध े (५-३८) यह सूत्र निबद्ध हुआ है। स्पष्ट है कि जो पर्याय कालविशेषकी मुख्यतासे कालयका विषय है वही पर्याय कालको गौण कर अन्य हेतुओंकी मुरुतासे बकालनयका विषय है । प्रवचनसारकी आचार्य अमृतचन्द्र कृत टीका में इन दोनों नयोंका यही अभिप्राय लिया गया है ।
इसकी समीक्षा
इस बातको स्वीकार करनेमें पूर्वपक्षको आपति नहीं हो सकती है कि जिस प्रकार अस्तिनय और नास्तिनय ये दोनों सप्रतिपक्षनय हैं उसी प्रकार कालनय और अकालनय तथा नियविनय और अनियतनय ये दोनों नययुगल भी सप्रतिपक्षनय हैं, परन्तु जो विषय अस्तिनया है उससे विरुद्ध विषय नास्तिनयका है। जो विषय कालनयका है उससे विरुद्ध विषय अकालयका है और जो विषय नियनियका है उससे विरुद्ध विषय अनियत्तिनयका है । अर्थात् अस्तिनय का विषय वस्तुमें विद्यमान स्वव्य क्षेत्र काल-भाव सापेक्ष अस्तित्व धर्म है और नास्तिका विषय उसी वस्तु में विद्यमान परवव्य-क्षेत्र -काल-भाव सापेक्ष नास्तित्व धर्म है । कालनयका विषय वस्तुमें विद्यमान कालसापेक्ष धर्म है और अकालनयका विषय उसी वस्तुमें विद्यमान कालसे भिन्न साधन सापेक्ष हुँ । तथा नियविनयका विषय वस्तुमें विद्यमान स्वतः सिद्ध धर्म है और अनियत्तिनयका विषय उसी वस्तु में विद्यमान परतः सिद्ध धर्म है । अपने इस कथनको हम और अधिक स्पष्ट करते हैं
जो वस्तु जिस समय द्रव्यकी अपेक्षा पृथ्वी रूप हैं वह वस्तु उस समय द्रव्यकी ही अपेक्षा जल, अग्नि या वायुरूप नहीं है। जो वस्तु जिस समय क्षेत्रको अपेक्षा एक क्षेत्रमें विद्यमान है यह वस्तु उस समय क्षेत्रकी ही अपेक्षा उस क्षेत्रसे भिन्न क्षेत्रमें विद्यमान नहीं है । जो वस्तु जिस समय कालको अपेक्षा जिन कालाणुओं के साथ संयुक्त हो रही है वह वस्तु उस समय कालको हो अपेक्षा उन कालाणुओंसे भिन्न कालाणुओंके साथ संयुक्त नहीं हो रही है और जो वस्तु जिस समय भावकी अपेक्षा अपनी जिस पर्यायको धारण किये हुए हैं वह वस्तु उस समय भावकी ही अपेक्षा उस पर्यायसे भिन्न अपनी अन्य विरुद्ध पर्याय को नहीं धारण किये हुए हैं। यह वस्तुमें अस्तिनय और नास्तिनय सापेक्ष कथन है ।
जिस वस्तु काल सापेक्ष धर्मके प्रगट होनेकी योग्यता विद्यमान है उस वस्तुमें फालानपेक्ष ( कालसे भिन्न साधन सापेक्ष ) धर्मके प्रगट होने की भी योग्यता विद्यमान है। जैसे -- जिस मनुष्य या तियंन विशेषमें कामरणकी योग्यता विद्यमान है उस मनुष्य या तिच विशेषमें अकालमरणकी भी योग्यता विद्यमान है या जिस आम्रफल में ऋतु के अनुसार पकने की योग्यता विद्यमान है उस आम्रफल में कृत्रिम ऊष्माके आधारपर पकी योग्यता भी विद्यमान है। यह बात दूसरी है कि जिस मनुष्य या तिच विशेषको अकालमरणके साधन प्राप्त न हों तो उस मनुष्य या तिर्यच विशेषका कालमरण ही होगा और जिस मनुष्य या नियंत्र विशेषको अकालमरणके साधन प्राप्त हो जायें तो उस मनुष्य या तियंच विशेषका अकालमरण हो जायेगा । इसी तरह जिस आम्रफलको कृत्रिम ऊष्मा के साधन प्राप्त न हो उस आम्रफलमें ऋतुके अनुसार ही पक्वता