Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 1
Author(s): Vanshidhar Vyakaranacharya, Darbarilal Kothiya
Publisher: Lakshmibai Parmarthik Fund Bina MP
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शंका ३ और उसका समाधान संस्कृत टीकाका अंश भी द्रष्टव्य है
च पुनः धर्म वृर्ष श्रेयः मन्यते श्रद्दधाति । कथंभूतं धर्मम् ? सर्वजीवानां दयापरं सर्वेषां जीवानां प्राणिनां पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतित्रसकाधिकानां शरीरिणां मनोवचनकायकृतकारितानुमतप्रकारेण दयापरं कपोत्कृष्टं धर्म श्रद्दधाति यः। तथा च धम्मो वत्थुसहावो खमादिभावो य दसविहो धम्मो ! रयणत्तयं च धम्मो जीवाणं रक्षणं धम्मो ॥ इति धर्म मनुते ।
इस टीकासे मी दयाको धर्म मानना सिद्ध है।
नियमसार गाथा ६ को टीकामें उद्धृत प्राचीन माया द्रष्टव्य है, जिसमें दयाको धर्म कहा गया है
सो धम्मो जत्थ दया सो वि तवो विसयणिग्गहो जस्स ।
दसअट्ठदोसरहिओ सो देवो पत्थि संदेहो ।। अर्थ-धर्म वही है जिसमें दया है, तप वही है जहाँ विषयोंका निग्नह है और देव वही है जिसमें अठारह दोष नहीं हैं।
दया-दम-त्याग-समाधिसंततेः पथि प्रयाहि प्रगुणं प्रयलवान् । नयत्यवश्यं बचसामगोचरं विकल्पदूरं परमं किमप्यसौ ॥१०७॥
-आत्मानुशासन अर्थ-हे भव्य ! तूं प्रयत्न करके सरल भावसे दया, इन्द्रियदमन, दान और ध्यानकी परम्पराके मार्ग में प्रवृत्त हो जा, वह मार्ग निश्चयमे किसी ऐसे उस्कृष्ट पद (मोक्ष) को प्राप्त कराता है जो वचनोंसे अनिबंधनीय एवं समस्त विकल्पसे रहित है।
एकजीवदयेकत्र परत्र सकला: क्रियाः । परं फलं तु पूर्वत्र कृषेश्चिन्तामणेरिव ॥३६१॥
-यशस्तिलक उपासकाध्ययन अर्थ--अकेली जीवदया एक ओर है और शेषकी सब क्रियाएँ दूसरी ओर है। शेष क्रिमाओंका फल खेतीके समान है और जीवदयाका फल चिन्तामणिके समान है।
उपसम दया य खंती वड्ढइ वेरागदा य जह जह से। तह तह य मोक्खसोक्खं अक्खीण भावियं होइ ॥६२।।
-मूलाचार द्वादशानुप्रेक्षा अर्थ--उपशम, दया, शान्ति और वैराग्य जैसे-जैसे जीव के बढ़ते है वैसे-वैसे ही अक्षय मोक्ष सुखकी प्राप्ति होती है।
छज्जी वसडायदणं णिच्चं मणवयणकायजोगेहि ।
कुरु दय परिहर मुणिवर भावि अपुवं महासतं ॥१३३।। -भायपाहुड़ अर्थ-हे मुनिवर | तू मन, यचन, कायसे छ: कायके जीवोंकी दया कर, छः अनायतनको छोड़ और अपूर्व महासत्त्व (चेतना भाव) को भाय ।