Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 1
Author(s): Vanshidhar Vyakaranacharya, Darbarilal Kothiya
Publisher: Lakshmibai Parmarthik Fund Bina MP
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जयपुर ( खानिया ) तत्वचर्चा और उसकी समीक्षा वीतरागत्वं निश्चय-व्यवहारनयाभ्यां साध्यसाधकरूपेण परस्परसापेक्षाभ्यामेव भवति मुक्तिसिद्धये न च पुननिरपेक्षाभ्यामिति वातिकम् ।
-पञ्चास्तिकाय १७२ माथा श्री जयसेनाचार्यकृत टोका अर्थ-चीतरागता, निश्चय तथा व्यवहार नयके साध्यसाधक भावसे परस्पर सापेक्ष होनेपर ही मुक्ति की सिद्धि के लिये होती है, दोनों नयों के निरपेक्ष होनेपर वह वीतरामता मुक्तिसिद्धि के लिये नहीं होती। श्री पं० दौलतरामजी छहढाला ग्रंथकी तीसरी हालमें लिखते है
अब व्यवहार मोक्षमग सुनिये, हेतु नियतको होई ॥२॥ अर्थ-अम व्यवहार मोक्षमार्गका स्वरूप सुनो, जो कि निश्चय मोक्षमार्गका कारण है । छठवीं ढालके अन्त में वे निष्कर्ष (ग्रंथका निचोड़) कहते हैं--
मुख्योपचार दुभेद यों बड़भागि रत्नत्रय धरें।
अरु धरेंगे ते शिव लहें तिन सुयश-जल जगमल हरें । अर्थ-इस प्रकार जो भाग्यशाली पुरुष निश्चय तथा व्यवहार रत्नत्रयको धारण करते है अथवा भविष्यमें धारण करेंगे वे मोक्ष प्राप्त करते हैं और उनका स्वच्छ यारूपी जल संसारके मैलको दूर करता है।
यहाँ धोनों वालों में पं० दौलतरामजीने व्यवहाररलत्रयको भी निश्चमरत्नत्रयका कारण बतलाते हुए मोक्षका कारण बतलाया है।
अब प्रसंगवश निश्चयररनत्रय (मोक्षमार्ग) का स्वरूप दिखलानेके लिये कुछ प्रमाण दिये जाते हैंश्री कुन्दकुन्दाचार्य पञ्चास्तिकायमें लिखते है
जो चरदि णादि पिच्छदि अप्पाणं अप्पणा अणण्णमय 1
सो चारितं गाणं देसणमिदि णिच्छिदो होदि ॥१६२|| अर्थ-जो (आत्मा) आत्माको आरमासे अनन्यमय आचरता है, जानता है वह (आत्मा ही) चारित्र है, ज्ञान है, दर्शन है ऐसा निश्चय रत्नत्रय है। हो कुन्दकुन्दाचार्य भावपाहुडमें लिखते हैं
___ अप्पा अप्पम्मि रओ सम्मादिट्टी हवेइ फुड जीवो।
जाणइ तं सण्णाणं चरदिह चारित्तमग्गु ति ।।३१।। अर्थ-जो आत्मामें रत है वह सम्यग्दृष्टि है, उसे जानना सम्यग्ज्ञान है और उसमें आचरण करन। सो सम्यक्चारित्र है। अमृतचन्द्र सूरि पुरुषार्थसिद्धधुपाममें एक प्रश्नका उत्तर देते हुए लिखते हैं
दर्शनमात्मविनिश्चितिरात्मपरिज्ञानमिष्यते बोधः ।
स्थितिरात्मनि चारित्रं कुत एतेभ्यो भवति बन्धः ।।२१६|| अर्थ-अपनी आत्माका विनिश्च य सम्पादन है, आत्माका विशेष शान सम्यग्ज्ञान है और आत्म स्थिरता सम्यकचारित्र है। इन तीनोंसे बन्ध कैसे हो सकता है ?