Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 1
Author(s): Vanshidhar Vyakaranacharya, Darbarilal Kothiya
Publisher: Lakshmibai Parmarthik Fund Bina MP
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जयपुर ( खानिया ) तत्वचर्चा और उसकी समीक्षा
वह असध्यवहार नयसे ही कहा जा सकता है और ऐसी अवस्थामें देवादि विषयक श्रद्धा मादि प्रशस्त रागरूप ही ठहरते हैं । निश्चय नमकी दृष्टिमें प्रथम दो तो उपचरित हैं ही, क्योंकि अन्य कारण हो और अन्य कार्य हो या एक-एक कारण हो और मुक्ति कार्य हो यह यथार्थं न होने से इसे यह नय स्वीकार नहीं करता, प्रत्युत उसका निषेध ही करता है। इसके लिए समयसार गाथा २७२ पर दृष्टिपात कीजिए । किन्तु उपचरित अद्भूत व्यवहार नवसे जो कुछ कहा जाता है, वस्तु वैसी न होनेसे यह निश्चयनको दृष्टिमें सर्वथा हेय है । क्योंकि एक तो यह नय वस्तु जैसी नहीं है हंसी कहता है। दूसरे, उसका साधन-साध्य आदि भावसे अन्यके साथ सम्बन्ध स्थापित करता अतएव यह उपचरित असद्भूत व्यवहार नयका ही
विषय है ।
अपर पक्षने यहां जो पुरुषार्थ सिचुपाय, पंचास्तिकापकी आचार्य जयसेन कृत टीका तथा छहढाला जो उदाहरण उपस्थित किये हैं वे सब उक्त कथनको हो पुष्टि करते हैं। कोई समझे कि मोक्षमार्गीके व्यवहार रत्नत्रय होता ही नहीं, मात्र निश्चय रत्नत्रय ही होता है इस एकान्तका परिहार उन वचनोंसे होता है । किन्तु इन दोनोंका स्वरूप क्या है इसे समझना अन्य बात है । परमात्मप्रकाश धर्मपुरुषार्थ (व्यवहारधर्म) से मोक्ष पुरुषार्थ ( निश्चयधर्म) भिन्न है यह बतलाते हुए लिखा है-
धम्म अत्य काम वि एवहूँ सयल मोक्खु । उत्तमुपभणाणि जिय अण्णें जेण ण सोक्खु ॥ २ - ३ ||
है जीव ! धर्म, अर्थ काम और और इन सब पुरुषार्थोंमें ज्ञानी पुरुष मोक्षको उत्तम कहते हैं, क्योंकि अन्य पुरुषार्थीसे परम सुख नहीं मिलता || २-३ ॥
surहार मोक्षमार्ग और निश्चय मोक्षमार्गमें साधन साध्यभाव किस रूप में है इसके लिए परमात्मप्रकाश अ० २ दोहा १४ के इस टीकावचनपर दृष्टिपात कीजिए
अत्राह शिष्यः - निश्चयमोक्षमार्गो निर्विकल्पः, तत्काले सविकल्प मोक्षमार्गो नास्ति, कथं साको भवतीति । अत्र परिहारमाह - भूतगमनयेन परम्परया भवतीति । अथवा सविकल्पनिर्विकल्पभेदेन निश्चयमोक्षमार्गो द्विवा । तत्रानन्तज्ञानरूपोऽहमित्यादि सविकल्पसाधको भवति, निर्विकल्पसमाधिरूपो साध्यो भवतीति भावार्थ: ।
यहाँ शिष्य प्रश्न करता है - निश्चय मोक्षमार्ग निर्विकल्प है, उस समय सविकल्प ( व्यवहार रत्नत्रयरूप) मोक्षमार्ग नहीं है, वह साधक कैसे होता है ?
यहाँ समाधान करते हैं-भूत नैगमनयकी अपेक्षा परम्परासे साधन है । अथवा सविकल्प मौर निर्विकल्पके भेद निश्चय मोक्षमार्ग दो प्रकारका है। उनमें से 'मैं अनन्त ज्ञानरूप हूँ' ऐसे विकल्पका नाम सविकल्प मोक्षमार्ग साधक है और निर्विकल्प समाधिरूप साव्य है यहू इस कथनका भावार्थ है
इससे व्यवहार मोक्षमार्ग क्या है और उसे साधन किस रूप में कहा है इसका कुछ हद तक ज्ञान हो जाता है |
अपर पक्षने निश्चय रत्नत्रयका ज्ञान करानेके लिए यहाँ पंचास्तिकाम, भावपाहुड, पुरुषार्थं सिद्धयुपाय, द्रव्यसंग्रह, परमात्मप्रकाश और छहढालाके कुछ प्रमाण उपस्थित किये हैं। उनसे इन बातों का ज्ञान होता है