Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ उ. ३ सू. ६० विजयायाः चतुर्दिक्षु वनषण्डादिकनि० १५५ पुनरुल्लिख्यन्ते एतदाशायेनाऽऽह - 'वणसंडवण्णओ भाणियच्चो' वनपण्डवर्णनको भणितव्यः, पूर्वप्रदर्शितवनखण्डवर्णकः समग्रोऽप्यत्र वक्तव्यः कियत्पर्यन्तं वनपण्डवर्णको वक्तव्यस्तत्राह - 'जाव बहवे वाणमंतरा' इत्यादि । 'बहवे वाणमंतरा देवादेवीओ' raise वानव्यन्तरा देवाश्च देव्यश्च - 'आसयति' यथा सुखमासते, 'संयंति' शेरते, दीर्घकायप्रसारणेन वर्तन्ते, न तु निद्रां कुर्वन्ति वानव्यन्तराणां देवयोनिकतयाऽस्मदादिवत् निद्राया अभावाद् इति । 'चिद्वंति' - तिष्ठन्ति, ऊर्ध्वस्थानेन वर्तते । 'णिसीदति' -निपीदन्ति - उपविशन्ति, 'तुयद्वंति' - त्वग्वर्तयन्ति त्वक् परावर्त्तनं कुर्वन्ति वामपार्श्वतः परावृत्य दक्षिणपार्श्वनावतिष्टन्ते, दक्षिणपाद्वा परावृत्य वामपार्श्वनावतिष्ठन्ते इति । 'रमंति' रमन्ते रतिमाबधन्ति, 'ललंति'= ललन्ति, मनईप्सितं यथा भवति तथा वर्तते इत्यर्थः ' कीलंति' - क्रीडन्ति - यथा यहां नहीं कर रहे हैं इसी वर्णन के करने की वात 'वणसंडवण्णओ भाणियो' सूत्रकारने इस सूत्र द्वारा यहां प्रकट की है बनों का वर्णन 'जाव बहवे वाणमंतरा' इस सूत्रानुसार यहां ऐसा कर लेना चाहिये कि इन वनपण्डों में 'बहवे वाणमंतरा देवा देवीओ' अनेक वानव्यन्तर देवऔर देवियां आकरके सुख पूर्वक उठा बैठा करती है । 'सयंति' सोती हैं पैर पसार करके आराम करती है । नकि हमारे जैसी निद्रा लेती हैं क्योंकि देवयोनि होने से उनके हमारे जैसी निद्रा नही होती है। 'चिति' कहीं कहीं वे खडी रहती हैं 'णिसीदति' कहीं २ वे बैठी रहती हैं, कहीं २ पर वे 'तुयति' लेटी रहती हैं, करवट बदलती हुई आराम करती है । 'रमंति' कहीं कहीं वे आपस में प्रेमालिङ्गन करती हैं 'ललंति' तथा - कहीं कहीं उनके मन में जैसा रुचता है वैसा काम भी किया करती है। 'कीलंति' कभी ये खेलती है । अर्थात् इनको जिस प्रकार
वर्णुन ४२वाना संअधम सूत्ररे 'वणसंडवण्णओ भाणियव्वो' मा सूत्रपाठ द्वारा अडींयां प्रगट पुरेस छे नानु वर्षान 'जाव बहवे वाणमंतरा' मा सूत्र पाहना કથન પ્રમાણે અહીંયાં એ પ્રમાણે કરવું જોઈએ કે આ વનખડામાં ‘વવે વાળ मंतरा देवाय देवीओया' भने वानव्यन्तर हेव ने हेविया भावीने सूमपूर्व उठे जेसे छे. 'सयंति' सूवे छे. पण सावीने आराम उरे छे. मनुष्यो प्रमाणे તે ઉંઘતા નથી. કેમકે દેવયેાનિ હેાવાથી તેને મનુષ્ય પ્રમાણે નિદ્રા હાતી नथी. 'चिट्ठेति' यां या तेथे ला रहे छे. 'णिसीदति' यांयां तेथे मेसी रहे छे. यां यांतेमा 'तुयति' सूह रहे छे, पडमा महले छे भने आराम १रे छे. 'रभंति ते परस्पर प्रेमासिजन रे छे. 'ललंति' तथायां यां तेना मनमां ने ३ये मे अमर्या रे छे. 'कोलंति'
જીવાભિગમસૂત્ર