Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीवाभिगमसूत्रे पाणयः 'चावपाणिणो' चापपाणयः चारुपाणिणो' चारुपाणयः चम्मपाणिणो चर्मपाण यः 'खग्गपाणिणो' खड्गपाणय 'दंडपाणिणो' दण्डपाणयः 'पासपाणिणो' पाशः प्राशो वा पाणौ येषां ते पाशपाणयः एतदेव समुदितभावेन दर्शयति 'नीलपीयरत्तचावचारुचम्मखग्गदंडपासवरधरा' नीलपीतरक्त चापपारुचर्मखगदण्डपाशप्रहरणधारिणः 'आयरक्खा' आत्मनो रक्षका विजयस्य, 'रक्खोवगा' रक्षोपगाः रक्षाकर्मणि दत्तचित्ताः 'गुता' गुप्ताः नैतानन्ये जानन्ति इमेऽस्यामें है ऐसे है। कितनेक आत्मरक्षकदेव 'चावपाणिणो केवल धनुष ही जिनके हाथों में है ऐसे है कितनेक आत्मरक्षक देव 'चारूपाणिणो' हाथों में चारु नामक हथियार विशेष लिये हुए है। 'चम्मपाणिणो' कितनेक आत्मरक्षकदेव ऐसे है कि जिनके हाथों में चमडे के कोडे है कितनेक आत्मरक्षक देव ऐसे हैं कि जिनके 'खग्गपाणिणो' हाथों में केवल तलवार है कितनेक आत्मरक्षक देव ऐसे है कि 'दंडपाणिणो' जिनके हाथों में केवल दण्ड ही है तथा कितनेक आत्मरक्षकदेव ऐसे है कि 'पासपाणिणो' जिनके हाथों में केवल पाश-जाल-अथवा प्राश -मुग्दर-ही है । इस प्रकार से वे आत्मरक्षक देव 'नीलपीयरत्तचाव. चारुचम्म खग्गदंडपासधरा' नील, पीत, लाल, वर्णों को लिये हुए, केवल धनुष को लिये हुए तथा चारु नामक हथियार विशेष को लिये हुए चमडे के कोडों को लिये हुए, तलवारों को लिये हुए तथा दण्डों को एवं पाशों को लिये वहां चारों दिशाओं में पहिले से रक्खे गये भद्रासनों पर बैठे हैं ये आत्मरक्षकदेव विजयदेव के 'आयरडोयामा छ. सेवा उता. 3281 आत्म२६४हेवे। 'रत्तपाणिणो' सास गना माण। मना डोयामा छ. सेवा उता. तथा 21 माम२२४ । 'चावपाणिणो' व धनुष छायामा छ सेवा ता. ४ मात्मरक्ष हेवो 'चारुपाणिणो' हाथामा या३ नामनु थियार विशेष सीसा उता, 'चम्मपाणिणो' टमा मात्म२६४ हेवाये पोताना डायमा यामान यामुळे प्राहुए या उता 'खग्ग पाणिणो' सा४ भाभ२६४ हवाय डोयामा तवा धा२७ ४री ती 'दंडपाणिणो' टा४ यात्म२३४ हेवाये हाथामा उ डान धा२९ ४रेस हुता. 'पासपाणिणों' ८९४ यात्म२६४ वा पोताना छायामा पाश-one અથવા પ્રાશ મુદ્ર જ ધારણ કરેલા હતા, આ પ્રમાણે તે આત્મરક્ષક દે नीलपीयरत्तचावचारुचम्मखग्गदंडपासधारा' नीस, पीरा, शता, रोना ધનને જ પોતાના હાથમાં ધારણ કરેલ હતા. તથા કેટલાક આત્મરક્ષક દેવે પિતાના હાથમાં ચામડાના ચાબુકે, તલવારો અને દંડાઓને તથા પાશેને લઈને ચારે દિશાઓમાં રાખવામાં આવેલ ભદ્રાસને પર બેઠેલા હતા. કેટલાક
જીવાભિગમસૂત્ર