Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
६८७
प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.९५ धातकीखण्डनिरूपणम् दोहवि वण्णओ' स खलु धातकीखण्डः सर्वदिग्विदिक्षु एकैकवनषण्डपद्मवेदिकाभ्यां संपरिवेष्टितः अनयो रुभयो वर्णनमत्र । 'दीवसमिया परिक्खेवेणं' द्वीपसमितः परिक्षेपेण-द्वीपप्रमाणानुरूपमुभयोवर्णनमिति विवेकः। 'धायइसंडस्स णं भंते ! दीवस्स कइ दारा पन्नत्ता' धातकीखण्डद्वीपद्वाराणि कियन्ति खलु भदन्त ! भगवानाह-'गोयमा चत्तारि दारा पन्नत्ता-विजए-वेजयंते-जयंतेअपराजिए' हे गौतम ! विजय-वैजयन्त-जयन्ताऽपराजितानि चत्वारि पूर्वाद्युत्तरान्तानि प्रथितानि । 'कहि णं भंते ! धायइसंडस्स दीवस्स विजए णामं दारे पन्नत्ते-गोयमा ? धायइसंड पुरथिमपेरंते कालोदसमुद्द पुरस्थिमद्धस्स पचत्थिमेणं ___ से णं एगाए पउमवरवेदियाए एगेणं वणसंडेणं सवओ समंता संपरिक्खित्ते' दोण्हवि वण्णओ' यह धातकी खण्ड चारों ओर से एकवनषंड से और एक पद्मवरवेदिका से घिरा हुआ है, इन दोनों का वर्णन यहां पर पूर्व में जैसा इनका वर्णन किया गया है वैसा ही कर लेना चाहिये 'दीव समिया परिक्खेवेणं' इन दोनों का परिक्षेप द्वीप प्रमाण के अनुरूप है 'धायइसंडस्स णं भंते ! दीवस्स कइ दारा पन्नत्ता' हे भदन्त ! धातकीखंड द्वीप के कितने द्वार कहे गये हैं ? 'गोयमा! चत्तारि दारा पण्णत्ता' हे गौतम ! धातकी. खंडद्वीप के चार द्वार कहे गये हैं । 'तं जहा' जो इस प्रकार से हैं 'विजए, वेजयंते, जयंते, अपराजिए' विजय वैजयन्त जयन्त और अपराजित 'कहिणं भंते ! धायइसंडस्स दीवस्स विजए णामं दारे पन्नत्ते' हे भदन्त ! धातकीखंड द्वीप का विजय नामका द्वार कहां पर है ? 'गोयमा ! धायइसंड पुरथिमपेरंते' हे गौतम ! धातकीखण्ड
से एगाए पउमवरवेदियाए एगेणं वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते दोण्ह वि वण्णओ' मा पाती यारे माथे से पनम' मने ४ ५५१२ વેદિકાથી ઘેરાયેલ છે. એ વનખંડ અને પદ્મવર વેદિકાનું વર્ણન અહીંયા पडसा रेभ तेभनु वएन ४२वामां मावेस छे. 20 शते ४२री से. 'दीवसमिया परिक्खेवेणं' मे मन्नन परिक्षयद्वी५ प्रमाणुनी म छे. 'धाइयसंडस्स ण भंते ! दीवस्स कइ दारा पण्णत्ता' हे मावन् पाती' दीपना सारा छ ? 'गोयमा ! चत्तारि दारा पन्नत्ता' गौतम! घातली दीपना यार हो। पामा मावेस छे. 'तं जहा' २ मा प्रमाणे छ. 'विजए, वेजयते, जयंते, अपराजिए' विन्य वैयन्त यन्त भने २१५२ 'कहि णं भंते ! धायइसंडस्स दीवस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते' मान् घातीय द्वीपनु वि०८५ नामनु द्वार ४यां मावेस छ ? 'गोयमा ! धायइसंडपुरथिमपेरते' हे गौतम ! थाती'
જીવાભિગમસૂત્ર