Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.१०९ इन्द्रियपुद्गलपरिणामनिरूपणम् ९२९ -सुस्पर्शपरिणामश्च-दुःस्पर्शपरिणामश्च । ‘से नूनं भंते ! उच्चावएसु-सहपरिणामेसु, उच्चावएसु रूवपरिणामेसु० एवं गंधपरिणामेसु-रसपरिणामेसु-फासपरिणामेसु परिणममाणा पोग्गला परिणमंति त्ति वत्तव्वं सिया, हंता गोयमा ! उच्चावएमु सद्दपरिणामेसु परिणममाणा पोग्गला परिणमंति त्ति वत्तव्वं सिया' अथ नूनं भदन्त ! एतत् यत्-उत्तमाऽधमैः शब्द-रूप-गन्ध-रस-स्पर्शपरिणामैः परिणमन्तः पुद्गलाः परिणमन्तीति इत्थं वक्तव्यं किम् ? भगवान्-आह-हे गौतम ! वक्तव्यइन्द्रिय का विषयभूत पुद्गल परिणाम भी सुस्पर्श परिणाम और दुःस्पर्श परिणाम के भेद से दो प्रकार का होता है । ‘से नूणं भंते ! उच्चावएसु सद्द परिणामेसु उच्चावएसु रूवपरिणामेसु एवं गंध परिणामेलु रस परिणामेसु फास परिणामेसु परिणममाणा पोग्गला परिणमंति इति वत्तव्वं सिया' हे भदन्त ! जो पुद्गल परिणाम भिन्न २ इन्द्रियों के विषयरूप से उत्तम अधम अवस्था में परिणत हुआ है वही पुद्गलपरिणाम क्या द्रव्य क्षेत्र आदि रूप सामग्री की सहायता से अन्य रूप में-उत्तम अधम रूप में और अधम उत्तम रूप में-परिणमसकता है ? तात्पर्य इसका यही है कि द्रव्य क्षेत्रादि रूप सामग्री के वश से जो पुद्गलों में भिन्न भिन्न रूप की अवस्थाएं हो जाती हैं उसी का नाम परिणाम है-तथा च जो चक्षु इन्द्रिय का विषयभूत पुद्गल परिणाम पहिले शुभरूप से परिणाम को प्राप्त हुआ हो या अशुभ रूप से परिणाम को प्राप्त हुआ हो वही शुभरूप परिणाम परिणाम भने २५ परिणामना मेथी ४२॥ थाय छे. 'से गुणं भंते ! उच्चावएसु सद्दपरिणामेसु उच्चावएसु रूवपरिणामेसु एवं गंध परिणाणामेसु रस परिणामेसु फासपरिणामेसु, परिणममाणा पोग्गला परिणमंति इति वन सिया' भगवन् ! २ पुस परिणाम हि भूहि द्रियाना विषय પણાથી ઉત્તમ અને અધમ અવસ્થામાં પરિણમિત થયેલ છે. એજ પુગલ પરિણામ શું દ્રવ્ય, ક્ષેત્ર વિગેરે સામગ્રીની સહાયતાથી અન્ય રૂપમાં-ઉત્તમ અધમપણામાં અને અધમ ઉત્તમપણામાં પરિણમી શકે છે? આ કથનનું તાત્પર્ય એજ છે કે-દ્રવ્ય ક્ષેત્રાદિરૂપ સામગ્રી વશાત્ જે પુદ્ગલોમાં જુદા જુદા રૂપની અવસ્થાઓ થઈ જાય છે, તેનું જ નામ પરિણામ છે. તથાચ જે ચક્ષુ ઈન્દ્રિયના વિષયભૂત પુદ્ગલ પરિણામ પહેલાં શુભ રૂપથી પરિણામને પ્રાપ્ત થયેલ હોય અથવા અશુભરૂપથી પરિણામને પ્રાપ્ત થયેલ હોય એજ શુભરૂપ
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જીવાભિગમસૂત્ર