Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1554
________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र. १० सू. १५४ जीवानां दशविधत्वनिरूपणम् १५४१ भगवानाह - गौतम ! ' जहन्नेणं अंतोमुहूत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो' जघन्येनातमुहूर्तमुत्कर्षेण वनस्पतिकाल: । ' एवं आउकाइयस्स - तेउ० - वाउकाइयस्स' पृथिवी कायिकवत् - अष्कायिक- तेजस्कायिक- वायुकायिकाणामपि ज्ञातव्यमन्तरम् आलापप्रकार ऊह्यः । 'वणस्स इकाइयस्स णं भते ! अंतरं कालओ केवच्चिरं होइ ?' वनस्पतिकायिकस्य खलु भदन्त ! अन्तरं कालतः कियच्चिरं भवति ? गौतम ! 'जा चैव पुढवीकाइस चिट्टणा' यैव पृथिवीकायिकस्य (संचिणा) कायस्थितिः इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो' हे गौतम! पृथिवीकायिक जीव का अन्तर जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त का होता है और उत्कृष्ट से वनस्पतिकाल प्रमाण अनन्तकाल का होता है 'एवं आउकाइयस्स तेउ० वाउ० वणस्सइ काइयस्स णं भते ! अंतरं कालओ' इसी प्रकार से काल की अपेक्षा अन्तर अष्कायिक जीव का, तैजस्कायिक जीव का और वायुकायिक जीव का होता है । इस सम्बन्ध में आलाप प्रकार स्वयं उद्भावित कर लेना चाहिये । हे भदन्त ! वनस्पतिकायिक का अन्तर काल की अपेक्षा कितना होता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं - हे गौतम ! वनस्पति कायिक का अन्तर 'जा चेव पुढबीकाइयस्स संचिहणा' पृथिवीकायिक जीव की कार्यस्थिति के अनुरूप होता है अर्थात् वनस्पतिकायिक जीव का अन्तर जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त का होता है और उत्कृष्ट से असंख्यातकाल का होता है इतने ही काल की पृथिवीकायिक કાયિક જીવનુ અંતર કાળની અપેક્ષાથી કેટલુ કહેવામાં આવેલ છે ? આ प्रश्नना उत्तरभां अलुश्री छे - गोयमा ! जहणणेणं अतोमुहुत्तं उक्कोसेणं बणस्सइकालो' हे गौतम! पृथ्वी अयि भवनुं अ ंतर धन्यथी शेड अंतમુહૂર્તીનુ હાય છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી વનસ્પતિકાળ પ્રમાણ અનંતકાળનુ હાય છે, ' एवं आउकाइयस्स उ० घाउ ० वणस्सइकाइयस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवच्चिरं હોદ્દે એજ પ્રમાણે કાળની અપેક્ષાથી અકાયિક જીવનું અંતર તેજસ્કાયિક જીવનું અંતર અને વાયુકાયિક જીવનું અંતર હોય છે. આ સબંધમાં આલાપ પ્રકાર સ્વય' બનાવીને કહી લેવા જોઇએ. હું ભગવન્ વનસ્પતિ કાયિક જીવનું અંતર કાળની અપેક્ષાથી કેટલુ' હાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે छे! हे गौतम! वनस्पतिप्रायि व अंतर 'जा चेव पुढवीकाइयरस संचि દુળ' પૃથ્વીકાયિક જીવની કાયસ્થિતિના કથન પ્રમાણે ડાય છે. અર્થાત્ વનસ્પતિ કાયિક જીવનું અંતર જઘન્યથી એક અંતર્મુહૂતનું હોય છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી અસ`ખ્યાત કાળનુ હાય છે. એટલાજ કાળની પૃથ્વીકાયિક જીવની જીવાભિગમસૂત્ર

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