Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीवाभिगमसूत्रे इया विसेसाहिया अणिदिया अणंतगुणा' ततः पृथिवीकायिकास्तोऽप्कायिकास्ततो वायुकायिका विशेषाधिकास्ततोऽनिन्द्रियाः सिद्धा अनन्तगुणाधिकाः सिद्धानामानन्त्यात् । 'वणस्सइकाइया अणंतगुणा' ततो वनस्पतिकायिका अनन्तगुणाधिकाः सिद्धेभ्योऽप्यानन्त्याद्वनस्पतिकायिकान्तमिति ॥सू० १५४॥
पुनः प्रकारान्तरमाह
मूलम्-अहवा दसविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा-पढ. मसमयणेरइया अपढमसमयणेरइया-पढमसमयतिरिक्खजो. णिया-अपढमसमयतिरिक्खजोगिया-पढमसमयमणूसा-अप ढमसमयमणूसा पढमसमयदेवा-अपढमसमयदेवा पढमसमयसिद्धा अपढमसमयसिद्धा। पढमसमयणेरइयाणं भंते ! पढमसमयणेरइयत्ति कालओ केवञ्चिरं होइ ? गोयमा! एगं समयं अपढमसमयणेरइएणं भंते !, जहण्णेणं दसवाससहस्साइं समऊणाइं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं समऊणाई, पढमसमयतिरिक्खजोणिएणं भंते ! पढमसमयतिरिक्खजोणियत्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! एक समयं, अपढमसमयतिरिक्खजोणिएणं भंते !० जहणणेणं खुड्डागं भवग्गहणं समऊणं उक्कोसेणं वणस्सइकालो । पढमसमयमणूसेणं भंते ! यिक जीव विशेषाधिक हैं । इनकी अपेक्षा 'वाउकाइया विसेसाहिया' वायुकायिक जीव विशेषाधिक हैं । इनकी अपेक्षा 'अणिदिया अणंत. गुणा' अनिन्द्रिय-सिद्ध जीव अनन्तगुणे अधिक हैं । क्योंकि सिद्ध जीव अनन्त हैं। इनकी अपेक्षा 'वणस्सइकाइया अणंतगुणा' वनस्पति कायिक जीव अनन्तगुणे अधिक हैं क्योंकि वनस्पतिकायिक जीवों का प्रमाण सिद्धों से भी अनन्तगुणा कहा गया है ॥१५॥ ४२०i 'वाउकाइया विसेसाहिया' पायि४ ७१ विशेषाधि छ, तना ४२di 'अणिंदिया अणंतगुणा' भनिन्द्रिय सिद्ध मनतम पधारे छे. भसिद्ध
यो मन त छ. तेना ४२di 'वणस्सइकाइया अणंतगुणा' वनस्पतिथि 04 અનંતગણું વધારે છે. કેમકે-વનસ્પતિકાયિક જેનું પ્રમાણ સિદ્ધોથી પણ અનંત
पामा मावस छ, ॥ सू. १५४ ॥
જીવાભિગમસૂત્ર
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