Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू. ११६ जम्बूद्वीपे तारारूपस्यान्तरादि नि० १००१ चत्तारि २ देवी सहस्साई परिवारं विउव्वित्तए' प्रभुः खलु तन्मध्यात् एकापि देवी अन्यानि आत्मतुल्यरूपाणि चत्वारि देवीनां सहस्राणि परिवार विकुर्वितुम् । 'एवामेव सव्वावरेणं सोलस देवि साहस्सीओ पन्नत्ताओ' एवमेव-पूर्वापरसंकलनेन षोडश देवी सहस्राणि चन्द्रस्य भवन्ति । ‘से तं तुडिए' तदेतत्-तुटिकम्-अन्तःपुरमिति यावत् इति । 'प्रभू णं भंते ! चंदे जोइसिंदे जोइसराया चंदवडिसए विमाणे-सभाए सुहम्माए चंदसि सीहासणंसि तुडिएण सद्धिं दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए ? नो इणटे समहे, से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-नो प्रभू चंदे देवे जोइसराया चंदवडेंसए सभाए सुहम्माए चंदंसि सीहासणंसि तुडिएण सद्धिं दिव्याई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए ?' प्रभुः खलु भदन्त ! चन्द्रो ज्योतिषेन्द्रो ज्योतिषराजश्चन्द्रावतंसके विमाने सभायां सुधर्मायां चन्द्रे सिंहासने त्रुटिकेन सार्धं दिव्यान् भोगभोगान् भुञ्जानो विहर्तुम् ? एगमेगा देवी अण्णाइं चत्तारि २ देवि सहस्साइं परिवार विउवित्तए' क्योंकि एक एक देवी अन्य चार हजार देवियों रूप परिवार की विकुर्वणा कर सकने में समर्थ है अतः 'एवामेव सपुवावरेणं सोलस देव साहस्सीओ पण्णत्ताओ' इस तरह सब चार अग्रमहिषियों का देवि परिवार ४-४ हजार के हिसाब से मिला कर १६ हजार का हो जाता है ‘से तं तुडिए' इस प्रकार से यह चन्द्र देव के अन्तःपुर का कथन है 'तुटिक' शब्द का अर्थ है अन्तःपुर । 'पभूणं भंते ! चंदे जोतिसिंदे जोतिसराया चंदवडिसए विमाणे सभाए सुहम्माए चंदंसि सीहासणंसि तुडिएण सद्धिं दिव्वाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए' हे भदन्त ! ज्योतिषेन्द्र ज्योतिषराज चंन्द्रावतंसक विमान में, सुधर्मा सभा में चन्द्रसिंहासन के ऊपर अपने अन्तःपुर के दिव्य भोगोपभोगों के भोगने के लिये क्या समर्थ है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'णो सपुव्वावरेणं सोलस देव साहस्सीओ पण्णत्ताओ' २॥ शत मधी भणीने से કે ચાર અગ્રમહિષિનો કુલ દેવિયોને પરિવાર ૪-૪ ચાર ચાર હજારના डिसा प्रमाणे १६ से १२ थाय छे. 'सेत्तं तुडिए' २॥ प्रमाणे मा
द्र देवना मत:५२ (२६वास) नु ४थन ४२वामी मा छ. 'तुटिक' से शहन। मथ मत:५२ से प्रभारी छ. 'पभूणं भते ! जोतिसिंदे जोतिसराया चंदवडिसए विमाणे सभाए सुहम्माए चंदसि सीहासणंसि तुडिएण सद्धि दिव्वाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए' हे भगवन् ! ज्योतिषेन्द्र ज्योतिष२।०१ यद्र। વતંસક વિમાનમાં, સુધર્મા સભામાં ચંદ્ર સિંહાસનની ઉપર પિતાના અંતર जी० १२६
જીવાભિગમસૂત્ર