Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयद्योतिका टीका प्र.१० सू.१५० जीवानां सप्तविधत्वनिरूपणम् १४८३ तेनोलेश्याकः, उत्कर्षेण द्वे सागरोपमे पल्योपमस्याऽसंख्येयभागाधिके-एतावकालमीशानदेवानां स्थितिः। 'पम्हलेस्से णं भंते !०' पद्मलेश्यः खलु भदन्त ! कालतः कियच्चिरम् ? गौतम ! 'जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं-उक्कोसेणं दससागरोवमाइं अंतोमुत्तमब्भहियाई' जघन्येनान्तर्मुहूर्तम्-उत्कर्षेण दशसागरोपमाणि अन्तर्मुहूर्ताभ्यधिकानि ब्रह्मलोकवासिन एतल्लेश्यावन्तः । सुक्कलेस्से णं भंते !' शुक्कलेश्याकः खलु शुक्कलेश्याक इति कृत्वा कालतः कियचिरं० सेणं दोणिसागरोवमाइं पलिओवमस्स असंखेजइ भागमभहियाई' हे गौतम ! तेजोलेश्या वाले जीवों की कायस्थिति का काल जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त का होता है और उत्कृष्ट से पल्योपम के असंख्यातवें भाग से अधिक दो सागरोपम का होता है यह उत्कृष्ट कायस्थिति का कथन ईशान देवों की भवस्थिति को लेकर किया गया है 'पम्हलेस्सेणं भंते !' हे भदन्त ! पद्मलेश्या वाले जीव की कायस्थिति का काल कितना होता है ?
उत्तर में प्रभु ने कहा-हे गौतम ! पद्मलेश्या वाले जीव की कायस्थिति का काल 'जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं दस सागरोवमाई अंतोमुहुत्तमन्भहियाई' जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त का होता है और उत्कृष्ट से एक अन्तर्मुहूर्त अधिक १० सागरोपम का होता है। इस लेश्या वाले ब्रह्मलोक कल्प के देव होते हैं-सुक्कलेस्सेणं भंते !' हे भदन्त ! शुक्ललेश्या वाले जीवों की कायस्थिति का काल कितना कहा गया है इसके उत्तर मे प्रभु कहते हैं ? हे गौतम ! शुक्ललेश्या वाले લેશ્યા વાળા ની કાયસ્થિતિને કાળ જઘન્યથી એક અંતમુહૂર્તને હોય છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી પાપમના અસંખ્યાત ભાગથી વધારે બે સાગરેપમને હોય છે. આ ઉત્કૃષ્ટ કાયસ્થિતિનું કથન ઈશાનદેવની ભવસ્થિતિને લઈને ४२वाम मावेस छ. 'पम्हलेस्सेण भंते ! भगवन् ! ५मलेश्या वानी કાયસ્થિતિનો કાળ કેટલું હોય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રીએ કહ્યું 2- गौतम ! पालेश्या वाणा नी यस्थितिना ४ 'जहण्णेण अतोमुहत्तं उक्कोसेण दस सागरोवमाइं अंतोमुहुत्त मभहियाई' धन्यथी ये मत इतना હોય છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી એક અંતર્મુહૂર્ત અધિક ૧૦ દસ સાગરોપમનો હોય छ. मासेश्यावा ग्रह ४८५ना व डाय छे. 'सुक्कलेस्सेण भंते !' भगवन શુકલેશ્યાવાળા જેની કાયસ્થિતિને કાળ કેટલું હોય છે? ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે હે ગૌતમ! શુકલેશ્યાવાળા જીની કાયસ્થિતિને કાળ જઘન્યથી
જીવાભિગમસૂત્ર