Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीवाभिगमसूत्रे मुहुत्तं-उक्कोसेणं अणंतं कालं जाव अवडूं पोग्गलपरियट्ट देसूणं जघन्येनान्तर्मुहर्तमुत्कर्षेणाऽनन्तं कालमनन्ता उत्सपिण्यसपिण्यः कालतः, क्षेत्रतोऽनन्ता लोका अपार्ध पुद्गलपरावर्त देशोनम् । ‘एवं सुयनाणिस्स वि' एवमेव श्रुतज्ञानिनोऽपि विज्ञेयम् । 'मणपज्जवणाणिस्स वि' मनःपर्यवज्ञानिनोऽपि एवमेव । 'केवलनाणिस्स काल का होता है ? अर्थात् किसी आभिनिबोधिक ज्ञानी का जब आभिनियोधिक ज्ञान छूट जाता है तो वह फिर इसे कितने काल के बाद प्राप्त कर सकता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-हे गौतम ! आभिनिबोधिकज्ञानी अपने छूटे हुए आभिनिबोधिक ज्ञान को पुनः प्राप्त कम से कम या तो 'जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं अणंतं कालं' एक अन्तर्मुहूर्त के बाद कर लेता है या फिर वह अधिक से अधिक अनन्तकाल के बाद प्राप्त कर लेता है इस अनन्त काल में अनन्त उत्सर्पिणियाँ और अनन्त अवसर्पिणियां समाप्त हो जाती है यावत् कुछ कम अपार्धपुद्गल परावर्त काल व्यतीत हो जाता है एवं सुयनाणिस्स वि' इसी प्रकार से श्रुतज्ञानी का भी छूटे हुए श्रुतज्ञान को प्राप्त करने में जघन्य और उत्कृष्ट काल का व्यवधान होता है बाद में वह पुनः श्रुतज्ञानी बन जाता है 'मणपज्जवनाणिस्स वि' मनः पर्यवज्ञानी भी अपने से छूटे हुए मनः पर्यवज्ञान को पुनः प्राप्त करने में जघन्य और उत्कृष्ट रूप से कहे गये एक अन्तर्मुहूर्त काल को
और अनन्तकाल को पार करके समर्थ हो जाता है। अर्थात् उसे पुनः નિબધિક જ્ઞાનવાળાનું જ્યારે આભિનિધિજ્ઞાન છૂટિ જાય છે, તે તે ફરીથી કેટલાકાળ પછી તેને પ્રાપ્ત કરી શકે છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે-હે ગૌતમ! આભિનિધિજ્ઞાની પિતાના છૂટિ ગયેલ આભિનિબેધિકજ્ઞાનને ५ पास ४२वामा माछामा माछ। 'जहण्णेणं अंतोमुहुत्त उक्कोसेणं अणतं कालं' એક અંતમુહૂર્ત પછી તે ફરીથી પ્રાપ્ત કરી લે છે. આ અનંત કાળમાં અનંત ઉત્સર્પિણી અને અનંત અવસર્પિણી સમાપ્ત થઈ જાય છે. યાવત કંઈક सोछ। म पुस ५२वत' पाती नय छे. 'एवं सुयनाणिरस वि' से। પ્રમાણે શ્રુતજ્ઞાનીનું પણ છૂટિ ગયેલ શ્રુતજ્ઞાન ફરીથી પાછું મેળવવામાં જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટ કાળનું વ્યવધાન હોય છે. તે પછી ફરીથી તે શ્રુતજ્ઞાની બની जय छे. 'मणपज्जवनाणिस्स वि' भन:५य ज्ञानी पापाताना छूटीगयेसा મન:પર્યવજ્ઞાનને ફરીથી પ્રાપ્ત કરવામાં જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટ પણાથી કહેવામાં આવેલ એક અંતર્મુહૂર્ત કાળને અને અનંતકાળને પાર કરીને મેળવવા સમર્થ थतय छे. अर्थात् शथी तन मेवी से छे. केवलनाणिस्स णं भंते !
જીવાભિગમસૂત્ર