Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 1535
________________ १५२२ जीवाभिगमसूत्रे अथवा-प्रकारान्तरेण संसाराऽसंसारभेदभिन्ना अपि सर्वे नवधा विभक्ताः सर्वजीवाः प्रज्ञप्ता तद्यथा-प्रथमसमयनैरयिकाः १ अप्रथमसमयनैरयिकाः २ प्रथमसमयतिर्यग्योनिकाः ३ अप्रथमसमयतिर्यग्योनिकाः ४ प्रथमसमयमनुष्याः ५ अप्रथमसमयमनुष्याः ६ प्रथमसमयदेवाः ७ अप्रथमसमयदेवाः ८ सिद्धाश्च ९। तत्र'पढमसमयनेरइया णं भंते ? गोयमा ! एकं समयं' प्रथमसमयनैरयिकः खलु भदन्त ?० गौतम ! एकसमयमात्रं प्रथमसमयनैरयिकस्य स्थितिः, द्वितीयादि समये तत्स्थिति स्वीकारे तु प्राथम्यधिशेषणमसमञ्जसं स्यात् इति 'अपढमसमय "अहवा णवविहा सव्वजीवा पण्णत्ता' इत्यादि । टीकार्थ-अथवा समस्त जीव इस तरह से भी नौ प्रकार के कहे गये हैं-'तं जहा' जैसे-'पढमसमयणेरड्या अपढमसमयणेरइया पढमसमयतिरिक्खजोणिया अपढमसमयतिरिक्खजोणिया' प्रथम समयनैरयिक अप्रथमसमयनैरयिक, प्रथमसमयतिर्यग्योनिक, अप्रथमसमय तिर्यग्योनिक, 'पढमसमयमणूसा, अपढमसमयमणूसा पढमसमय देवा, अपढम समय देवा' प्रथम समय मनुष्य, अप्रथम समय मनुष्य प्रथम समय देव अप्रथम समय देव और 'सिद्धा य सिद्ध, इनकी कायस्थिति का विचार-'पढमसमयनेरइयाणं भंते !' हे भदन्त ! जो प्रथम समयवर्ती नैरयिक हैं उनकी कायस्थिति का काल कितने तक का होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-हे गौतम ! प्रथम समयवर्ती नैरयिक की कायस्थिति “एक्कं समयं' एक समय तक की होती है 'अपढमसमयनेरइयस्स णं भंते ! हे भदन्त ! 'अहवा णवविहा सव्व जीवा पण्णत्ता' त्या ટીકાર્થ—અથવા સઘળા જી આ રીતે પણ નવ પ્રકારના કહેવામાં मावेश छ. 'पढमसमयणेरइया; अपढमसमयणेरइया, पढमसमयतिरिक्खजोणिया अपढमसमयतिरिक्खजोणिया' प्रथम समय नै२यि४ मप्रथमसमय नरयि४, प्रथम समय तिय योनि, मप्रथम समय तिययानि४, 'पढम समय मणूसा अपढमसमयमणूसा पढमसमयदेवा, अपढमसमयदेवा' प्रथम समय मनुष्य, मप्रथम समय मनुष्य प्रथम सभय हे मप्रथम सभय हे भने, 'सिद्धाय' सिद्ध એમની કાયસ્થિતિનું કથન 'पढमसमयनेरइयाणं भंते ! मापन ! प्रथमसमयमा पतमान नै२. યિકે છે. તેમની કાયસ્થિતિને કાળ કેટલ કહેવામાં આવેલ છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે હે ગૌતમ ! પ્રથમ સમયમાં વર્તમાન નરયિકની यस्थिति 'एक्कं समयं मे समय ५य-तनी डोय छे. 'अपढमसमयनेर । જીવાભિગમસૂત્ર

Loading...

Page Navigation
1 ... 1533 1534 1535 1536 1537 1538 1539 1540 1541 1542 1543 1544 1545 1546 1547 1548 1549 1550 1551 1552 1553 1554 1555 1556 1557 1558 1559 1560 1561 1562 1563 1564 1565 1566 1567 1568 1569 1570 1571 1572 1573 1574 1575 1576 1577 1578 1579 1580