Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीवाभिगमसूत्रे
साद्यपर्यवसितत्वात् सादिको वा सपर्यवसितः - मतिज्ञानादिमान् मतिज्ञानादौ छद्मस्थ वृत्तिताऽतः सादि सपर्यवसितत्वम् । 'तत्थ णं जे साईए सपज्जवसिए से जहनेणं अंतोमुहुतं' तत्र द्वयोर्मध्ये यः सादिकः सपर्यवसितः स जघन्येनान्तमुहूर्तम् सम्यक्त्वस्य जघन्यत एतावन्मात्र कालत्वात् सम्यक्त्ववतश्च ज्ञानित्वात्,
उक्तञ्च - 'सम्यग्दृष्टेर्ज्ञानं मिथ्यादृष्टेर्विपर्यासः" इति । ' उक्कोसेणं सित ज्ञानी केवली भगवान् होते हैं क्योंकि केवल ज्ञान सादी होता है और होकर के फिर छूटता नहीं है अतः इस ज्ञान वाला जो केवली है वह सादिक अपर्यवसित कहा गया है तथा जो मति ज्ञानादिक होते हैं वे सादि और सपर्यवसित हैं और इनकी वृत्ति छद्मस्थ जीवों में होती है 'तत्थणं जे से सादीए सपज्जवसिए से जहन्नेणं अंतोमुहुतं उक्कोसेणं छावट्टि सागरोवमाई सातिरेगाई' इनमें जो सादिक सपर्यवसित ज्ञानी होता है वह जघन्य से तो एक अन्तमुहूर्त की कायस्थिति वाला होता है और उत्कृष्ट से कुछ अधिक ६६ सागरोपम की कायस्थिति वाला होता है । सम्यक्त्व की जघन्य स्थिति एक अन्तर्मुहूर्त की कही गई है और उत्कृष्ट स्थिति कुछ अधिक ६६ सागरोपम की कही गई है । सम्यक्त्वशाली जीव को ही ज्ञानी कहा गया है अतः जघन्य और उत्कृष्ट ये स्थिति इसी भाव को ले कर यहां पर ज्ञानी की बतलाई गई है ।
उक्तंच - 'सम्यदृष्टेर्ज्ञान मिथ्यादृष्टेर्विपर्यासः' तथा उत्कृष्ट स्थिति જ્ઞાની કેવળી ભગવન્ હાય છે. કેમકે કેવળજ્ઞાન સાદિ હૈાય છે. અને તે થયા પછી પાછુ છૂટતું નથી. તેથી આ જ્ઞાનવાળા જે કેવલી છે. તેઓને સાક્રિક અપ સિત કહેવામાં આવેલ છે. તથા જે મતિજ્ઞાન વિગેરે હાય છે, તે સાર્દિ सने सपर्यवसित छे अने तेनी वृत्ति छमस्थ मां होय छे. 'तत्थ णं जे से सादीए सपज्जवसिए से जहण्णे णं अंतो मुहुत्तं उक्कोसेणं छावट्ठि सागरोवमाई सातिरेगाई' तेमां ने साहि सपर्यसित ज्ञानी होय छे ते धन्यथी तो એક અંતર્મુહૂતની કાયસ્થિતિવાળા હોય છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી કઈક વધારે ૬૬ છાસઠ સાગરોપમની કાયસ્થિતિવાળા હૈાય છે. સમ્યક્ત્વની જઘન્ય સ્થિતિ એક અંતર્મુહૂર્તની કહેવામાં આવેલ છે. અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ કંઈક આછી છાસઠ સાગરાપમની કહેવામાં આવેલ છે. સમ્યક્દ્શાલી જીવને જ જ્ઞાની કહેલા છે તેથી જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ એજ ભાવને ગ્રહણ કરીને અહીયાં ज्ञानीना संघभांडेवामां आवे छे. उद्धुं छे - 'सम्यग्दृष्टेर्ज्ञानं मिथ्या दृष्टे विपर्यासः' तथा तेभनी ने उत्कृष्ट स्थिति अहेवामां आवे छे. ते अप्रति
જીવાભિગમસૂત્ર