Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीवाभिगमसूत्रे मुहूर्तम् । 'अप्पाबहु० सव्वत्थोवा अणागारोवउत्ता' सर्वस्तोका अनाकारोपयुक्ताः अल्पबहुखविचारे' 'सागारोवउत्ता असंखेज्जगुणा' साकारोपयुक्ता असंख्येयगुणा:' अथोपसंहरति- से तं दुविहा सव्वजीवा पन्नत्ता' इत्थं सर्वजीवा द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, विचार्य व्युत्पादिता, इति ॥सू० १४३॥ सम्प्रति त्रिविधवक्तव्यतामाह
मूलम्-तत्थ णं जे ते एवमाहंसु तिविहा सव्वजीवा पन्नत्ता ते एवमाहंसु तं जहा-सम्मदिदि, मिच्छादिट्टी। 'सम्मदिट्रीणं भंते ! कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! सम्मदिट्री दुविहे पन्नत्ते तं जहा-साईए वा अपजवसिए साईए वा सपजव सिए, तत्थ णं जे से साईए सपजवसिए से जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं छावर्द्धि सागरोवमाइं साइरेगाइं । मिच्छा दिट्ठी तिविहे पन्नत्ते तं जहा-साइए वा सपज्जवसिए अणाईए वा अपजवसिए अणाईए वा सपज्जवसिए तत्थ णं जे ते साईए सपजवसिए से जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं अणंतं कालं जाव अवड पोग्गलपरियटुं देसूणं सम्मामिच्छादिट्टी जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं। सम्मदिटिस्स अंतरं साइयस्स अपजवसिवस्स नत्थि अंतरंसाईयस्स सपजवसियस्स जहन्नेणं सबसे कम हैं और साकारोपयुक्त जीव इन से असंख्यातगुणें अधिक हैं। से त्तं दुविहा' इस प्रकार से समस्त जीव दो प्रकार के कहे गये हैं यहां पर इस विषय को संग्रह करके प्रकट करने वाली यह गाथा है
'सिद्ध सइंदियकाए जोए वेए कसायलेस्सा य,
णाणुवओगाहारा भास सरीरी य चरमो य ॥१॥१४॥ पधारे छ. 'सेत्तं दुविहा' से प्रभारी सघणा ७ मे २न उवामा આવેલા છે. અહિયાં આ વિષયને સંગ્રહ કરીને બતાવવા વાળી આ ગાથા કહેવામાં આવી છે.
'सिद्ध सइंदियकाए जोए वेए कसायलेस्सा य, णाणुवओगाहारा भाससरीरी य चरमो य ॥१॥ सू. १४३।।
જીવાભિગમસૂત્ર