Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयद्योतिका टीका प्र.६ सू.१३६ सप्तविध सं० स० जीवनिरूपणम् १२७७ एतेषामेतासां स्थितिः-'नेरइस्स ठिई जहन्नेणं दसवाससहस्साई उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइ” नैरयिकस्य स्थितिर्भदन्त ! कियती ? गौतम ! जघन्येन दशवर्षसहस्राणि उत्कर्षेण त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाणि । 'तिरिक्खजोणियस्स जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिनि पलिओवमाई' जघन्येन तिर्यग्योनिकस्यान्तमुहर्तमुत्कर्षण त्रीणि पल्योपमानि स्थिति गौतम ! 'एवं तिरिक्खजोणिणीए वि' एवं तिर्यग्योनिक्या अपि स्थितिर्जघन्योत्कर्षाभ्यां ज्ञेया । 'मणुस्साण वि-मणुस्सीण वि' मनुष्याणामपि मानुषीणां चापि स्थितिरेथैव । निक २ मनुष्य ३ मानुषी ४ देव ५ और देवियां ६, 'णेरइयस्स ठिई जहन्नेणं दसवाससहस्साइं,उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई' नैरयिक जीवों की स्थिति जघन्य से १० हजार वर्ष की है और उत्कृष्ट से ३३ सागरोपम की है 'तिरिक्खजोणियस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिणि पलि.' तिर्यग्योनिक पुल्लिङ्ग जीव की स्थिति जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट से तीन पल्योपम की है 'एवं तिरिक्ख जोणिणीए वि' इसी प्रकार की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट से तिर्यग्योनिक स्त्रियों की भी है। 'मणुस्साण वि मणुस्सीण वि' मनुष्ययोनिक पुल्लिङ्ग जीवों की स्थिति भी जघन्य और उत्कृष्ट से क्रमशः एक अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट से तीन पल्योपम की है मनुष्ययोनिक स्त्रियों की भी यही स्थिति है यह तिर्यग्योनिक एवं मनुष्ययोनिक जीवों की स्थिति का कथन भोगभूमि देवकुरु आदि अकर्मभूमि जीवों की अपेक्षा से किया गया जानना चाहिये
भानुषी ४ व ५ किया है, 'नेरइयस्स ठिई जहण्णेणं दसवाससहस्साइं उकोसेणं तिणि पलिओवमाई' नैयि पनी स्थिति न्यथी १० ११ १२ वर्षनी छे. मने थी 33 तेत्रीस सागरापभनी छे. 'तिरिक्खजोणियरस जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई' तिय-योनि ५३१ जतिना જીવની સ્થિતિ જઘન્યથી એક અંતર્મુહૂતની છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી ત્રણ પત્યેपभनी छे. 'एवं तिरिक्ख जोणिणीए वि' से प्रमाणे तिय-योनि लियोनी ४५न्य मन. ४८ स्थिति ५५ छे. 'मणुरसाण वि मणुस्सीण वि' भनुष्य નિક પુરૂષ ની જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ પણ યથા કમ એક અંત. મુહૂતની અને ઉત્કૃષ્ટથી ત્રણ પાપમની છે. મનુષ્ય યોનિક સ્ત્રિની સ્થિતિ પણ એજ પ્રમાણે સમજવી. આ તિયનિક અને મનુષ્ય કેનિક જીની સ્થિતિનું કથન ભેગ ભૂમિ દેવકુરૂ વિગેરેને અકર્મ ભૂમિના જીવની અપેક્ષાથી
જીવાભિગમસૂત્ર