Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
प्रमेयद्योतिका टीका प्र.१० सू.१४१ प्रकारान्तरेण सर्वजीवानां दैविध्यम् १३३७ स्तेभ्योऽनन्तगुणाः निगोदानामानन्त्यात् । 'अहवा दुविहा सव्व जीवा पन्नत्ता तं जहा-सकाइया चेव अकाइया चेव एवं चेव' अथवा-द्विविधाः सर्वजीवाः प्रज्ञप्ताः तद्यथा-सकायिकाः कार्मणादि शरीरविशिष्टाः अकायिकाः मुक्ताः। एवमेव सर्व सकायिकाऽकायिकेषु वक्तव्यम् । एवं सजोगी चेव अजोगी चेवतहेव' सेन्द्रियाऽनिन्द्रियवत् सयोगिनश्चैवाऽयोगिनश्चैव । तथैव ‘एवं सलेस्सा
चैव अलेस्सा चेव, ससरीरा चेव असरीरा चेव' एवं सेन्द्रियाऽनिन्द्रियवत् जीव अनन्त हैं ! । 'अहवा दुविहा सव्वजीवा प०' अथवा-इस तरह से भी समस्त जीव दो प्रकार के हैं-'तं जहा-सकाइया चेव अका. इया चेव' एक सकायिक और दूसरे अकायिक ‘एवं चेव' इन सकायिक और अकायिक जीवों के सम्बन्ध में जैसा कथन ऊपर के जीवों के सम्बन्ध में किया गया है वैसा ही कर लेना चाहिये कार्मण आदि शरीरों से जो विशिष्ट होते हैं वे सकायिक हैं और जो इन कार्मण आदि शरीरों से रहित हैं वे अकायिक हैं 'एवं सजोगी व अजोगी चेव' इसी तरह से समस्त जीव सयोगी और अयोगी के भेद से दो प्रकार के हैं । अयोगी जीवों में सिद्ध जीव गृहीत हुए हैं और सयोगी जीवों में सेन्द्रिय जीव गृहीत हुए हैं । 'तहेव' इनके विषय में समस्त स्थिति आदि का कथन पूर्व के जैसा किया गया है वैसा ही यहां पर भी कर लेना चाहिये 'एवं सलेस्सा चैव अलेस्सा चेव' इसी प्रकार से सलेश्य जीव और अलेश्य जीव के मेद से समस्त मनात छे. 'अहवा दुविहा सव्व जीवा पण्णत्ता' 4240 शत ५५५ सपा
मे ४२॥ छ 'तं जहा सकाइया चेव अकाइया चेव' से सायिक भने मी1 मयि ‘एवं चेव' 20 स४यि४ मने मयि वान सभा જે પ્રમાણેનું કથન ઉપરના જીના સંબંધમાં કરવામાં આવેલ છે. એજ પ્રમાણે કથન કરી લેવું જોઈએ. કામણ વિગેરે શરીરેથી જે વિશિષ્ટ હોય છે તેઓ સકાયિક છે. અને જેઓ આ કાર્માણ વિગેરે શરીરથી રહિત છે तमा २५148 छे. 'एवं सजोगी चेव अजोगीचेव' मा प्रभारी सघणाला સગી અને અમેગીના ભેદથી બે પ્રકારના છે. અગી માં સિદ્ધ જીવો ગ્રહણ થયેલા છે. અને સગી માં સેંદ્રિય જીવ ગ્રહણ કરાયેલ છે. 'तहेव' मेमना सधमा स्थिति विगेरे सघणु ४थन ५॥ ४॥ प्रमाणे मडीयां ५५ ४री से नये. 'एवं सलेस्साचे अलेस्सा चेव' से प्रमाणे એલેશ્યજીવ અને અલેશ્યજીવના ભેદથી સમસ્ત છ બે પ્રકારના થાય છે.
जी० १६८
જીવાભિગમસૂત્ર