Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.१२५ सर्वप्राणभूतादीनां उत्पन्नपूर्वादिकम् ११२७ सम्भवात्, तत ऊर्ध्वमवश्यं मनुष्यभवासादनेन मोक्षप्राप्तेः । देवीत्वस्य तु सर्व थैव प्रतिषेधः देवीनां तत्रो त्पादाऽसम्भवात् । ___ अथ चतुर्विध जीवानां भवस्थिति कायस्थितिं च सामान्यो वर्णयति 'नेरइ. याणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं दसवाससहस्साई उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई' नैरयिकाणां खलु भदन्त ! कियन्तं कालं नारकपृथिव्यां स्थितिः ? भगवानाह-गौतम ! जघन्येन दशवर्षसहस्राणि एतच रत्नप्रभा प्रथम प्रस्तटमपेक्ष्य कथितम् उत्कर्षेण त्रयस्त्रिंशत् सागरोपमाणि एतच्च तमस्तमा सप्तनरक पृथिव्यपेक्षया ज्ञातव्यम् इति । 'एवं सव्वेर्सि पुच्छा' एवं सर्वेषां पृच्छा तथाहि-'तिरिक्ख जोणियाणं जहन्नेणं अंतोमुहुर्त उक्कोसेणं तिन्नि पलि. हुए हैं क्योंकि यहां पर एक ही बार उत्पाद होता है-और यहां से चवे हए जीव का मनुष्यगति में उत्पाद होकर मोक्ष में वहां से सीधा गमन होता है । 'से तं देवा' इस प्रकार से यह देवों के सम्बन्ध में कथन किया गया है।
अब सूत्रकार चारों प्रकार के जीवों की सामान्यरूप से भवस्थिति और कायस्थिति का प्रतिपादन करते हैं-'नेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता' हे भदन्त ! नैरयिक जीवों की कितनी काल की स्थिति कही गई है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! जहन्नेणं दसवाससहस्साई उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई' हे गौतम ! नैरयिक जीवों की सामान्य से जघन्य स्थिति दश हजार वर्ष की कही गई है और उत्कृष्ट स्थिति, ३३ सागरोपम की कही गई है "एवं सव्वेसि पुच्छा' इसी प्रकार से तिर्यश्चों की जघन्य स्थिति एक अन्तઉત્પન્ન થતા નથી. તેમજ અનેક વાર દેવ રૂપથી પણ ઉત્પન્ન થતા નથી. કેમ કે અહીયાં એકજવાર ઉત્પાદ થાય છે. અને અહીયાં થી ચવેલા જીવ ને
पाई मनुष्य गतिमा छन त्यांथी सीधा मोक्षमा मन रे छ. 'सेत्तं देवा' मा रीते मा हेवाना समयमा ४थन ४२वामां आवे छे. - હવે સૂત્રકાર ચારે પ્રકારના છની સામાન્ય પ્રકારથી જીવ સ્થિતિ, सन यस्थिति नु प्रतिपादन ४२ छ.-'नेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता' है मापन नैयि योनी सा सनी स्थिति हवामा सावेत छ ? भा प्रश्न न उत्तरमा प्रभुश्री ४ छ -'गोयमा ! जहण्णेणं दसवाससहस्साई उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई' गौतम ! नै२यि वानी सामान्यथा જઘન્ય સ્થિતિ દસ હજાર વર્ષની કહેવામાં આવેલ છે. અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ 33 तेत्रीस सागरा५मनी वाम मावेस छ, “एवं सव्वेसिं पुच्छा' मेर
જીવાભિગમસૂત્ર