Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीवाभिगमसूत्रे
दोनाप्यत्र समावेशात् । 'सुहुमवणस्स पज्जत्तगा संखेज्जगुणा' पर्याप्तसूक्ष्मवनस्पतिकायाः संख्येयगुणा अपर्याप्तक सूक्ष्माऽपेक्षया 'सुहुमा पज्जत्तगा विसेसाहिया' सूक्ष्मपर्याप्त कवनस्पतिकायापेक्षया सामान्यतः सूक्ष्माः पर्याप्ताविशेषाधिका भवन्ति इति । पञ्जमा पबहुत्वम् || सू० १३१॥
संप्रति बादरादीनां स्थित्यादिकमाह
मूलम् - बायरस्स णं भंते! केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्त उक्कोसेणं तेत्तीस सागरोवमाई ठिई पन्नत्ता एवं बायर तसकाइयस्स वि बायर पुढवीकाइयस्स बावीसवाससहस्साइं बायर आउस्स सत्तवाससहस्सं, बायर उस्त तिन्नि राइंदिया, बायरवाउस्स तिष्णिवाससह स्साइं बायर वणस्सइकाइयस्स दसवाससहस्साई, एवं पत्तेयसरीरबायरस्त वि, निओयस्स जहणणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं, एवं वायरणिगोदस्स वि, अपज्जत्तगाणं सव्वेसि अंतोमुहुत्तं, पज्जत्तगाणं उक्कोसिया ठिई अंतोमुहुतूणा कायवा सव्वेसिं । बायरे णं भंते! बायरे त्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहणणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं को जो विशेषाधिक कहा गया है उसका कारण सूक्ष्म पर्याप्तक पृथिवीकायादिकों का इसमें अन्तर्भाव हो जाता है । सामान्य सूक्ष्म अपर्याप्तकों की अपेक्षा 'सुहुम वणस्सइ पज्जतगा संखेज्जगुणा' सूक्ष्म वनस्पति पर्याप्तक संख्यातगुणें है । 'सुहुम पज्जत्तगा विसेसाहिया' सूक्ष्म पर्याप्तक वनस्पतिकायिकों की अपेक्षा सामान्य सूक्ष्म पर्याप्तक विशेषाधिक है- क्योंकि इनमें पर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायादिकों का समावेश हुआ है । यह इनका पांचवां अल्पबहुत्व है ॥ १३९॥ કહ્યા છે, તેનુ કારણ સૂક્ષ્મ અપર્યાપ્તક પૃથ્વીકાયિકોના તેમાં અંતર્ભાવ થયેલ छे, सामान्य सूक्ष्म अपर्याप्त अना उरतां 'सुहुमवणरसइ पज्जत्तगा संखेज्जगुणा' सूक्ष्म वनस्पति पर्याप्त संख्यातगा छे. 'सुहुम पज्जत्तगा विसेसाहिया' સૂક્ષ્મપર્યાપ્તક વનસ્પતિકાયિકાના કરતાં સામાન્ય સૂક્ષ્મ પર્યાપ્તક વિશેષાધિક છે. કેમકે પર્યાપ્તક સૂક્ષ્મ પૃથ્વીકાયિકાના તેમનામાં સમાવેશ થયેલ છે. આ તેનું પંચમુ અલ્પ બહુ પશુ કહેલ છે. ૫ ૧૩૧ ॥
જીવાભિગમસૂત્ર