Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीवाभिगमसूत्रे कायिकसूत्रवत् । बादर - त्रसकाइकसूत्रं बादरपृथिवीकायिकसूत्रवत् । ' एवं पज्जतगाणं अपज्जत्तगाणं वि अंतरं' बादरपृथिवीवत् पर्याप्तकानां सर्वेषां सामान्य बादरबादरपृथिव्यादीनामन्तरम् तथा - अपर्याप्तानामपि । 'ओहे य वायर तरु ओघनिगोए बायरणिओए य कालमसंखेज्ज अंतरं' सामान्यतो बादरतरुणाम् ओघनिगोदस्य सामान्यतो निगोदस्य बादरनिगोदस्य चान्तरम् - असंख्येय कालस्य भवति । ' से साणं वणस्सइकालो' शेषाणां बादरपृथिव्यादीनामन्तरं वनस्पतिकालोऽनन्तं कालं यावत् सू०॥१३२॥
संप्रत्येतेषामल्पबहुत्वमाह
मूलम् - अप्पा० सव्वत्थोवा बायरतसकाइया बायर तेउकाइया असंखेज्जगुणा पत्तेयसरीवायरवणस्सइकाइया असंखेज्जगुणा बायरणिओया असंखेज्जगुणा बायरपुढवीकाइया असंखेजगुणा आउवाउ असंखेजगुणा बायरवणस्सइकाइया अनंतगुणा बायरा विसे साहिया ॥ १ ॥ एवं अपजत्तगाण वि- २ । पज्जत्तगाणं सव्वत्थोवा बायर उकाइया बायरतसकाइया असंखेजगुणा पत्तेयबादर पृथिवीकायिक सूत्र के जैसा व्याख्येय है । ' एवं पज्जत्तगाणं अपज्जत्तगाणं वि अंतरं' बादर पृथिवीकायिक की तरह सब इन पर्याप्तकों का और अपर्याप्तकों का सामान्य बादरों का और बादर पृथिव्यादिकों का अन्तर जानना चाहिये 'ओहे य बायरतरु ओधनिगोए बायरणिओए य कालमसंखेज्जं अंतरं' सामान्य से बादर वनस्पतिकायिकों का सामान्य से निगोद का और बादर निगोद का अन्तर असंख्यात काल का होता है 'सेसाणं वणस्स कालो' बादर पृथिव्यादिकों का अन्तर वनस्पतिकाल प्रमाण है ॥ १३२ ॥
કથન પ્રમાણે અને માદર ત્રસકાયિક સૂત્ર ખાદર પૃથ્વીકાયિકના સૂત્ર પ્રમાણે सम से'. 'एवं पज्जन्त्तगाणं अपज्जत्तगाणं वि. अंतरं' महर पृथ्वी अयि ना કથન પ્રમાણે આ બધાજ પર્યાપ્તકાનુ અને અપર્યાપ્તકેનું સામાન્ય ખાદીનુ रमने हर पृथिव्याहिअनु अ ंतर समल सेवु'. 'ओहेय बायरतरु ओघनिगोए बायरणिओए य कालमसंखेज्जं अंतरं' सामान्यपणाथी माहर वनस्पतिअयि अनु સામાન્યપણાથી નિગોદનુ અને માદર નિગોદાનું અંતર એસંખ્યાત કાળનું थाय छे. 'सेसाणं वणरसइकालो' माहर पृथ्वी अयिअनु तर वनस्पति अज प्रभानु छे. ॥ सू. १३२ ॥
જીવાભિગમસૂત્ર