Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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२०६८
जीवाभिगमसूत्रे
तान्येव यावदावलिकाप्रविष्टानाम् आवलिकाबाह्यानां च भावात्, परत आवलिकाप्रविष्टान्येन, तथाचाह - 'अणुत्तरोववाइय विमाणा दुविहा पन्नत्ता' अनुतरोपपातिकदेवानामावलिकाप्रविष्टविमानानि - एवमेव, बाह्यानि च द्विप्रकारकाणि'तं जहा - वट्टे य-तंसा य' तद्यथा-वृत्तं च व्यस्राणि च ( न तु चतुरस्राणि) सौधर्मत आरभ्य ग्रैवेयकं यावत् आवलिकाप्रविष्टानि आवलिकाबाह्यानि च (एतेष्वेवोभयोः सद्भावात् ) ततः परमावलिकाप्रविष्टान्येव भवन्ति । अनुत्तरविमानानि किं संस्थितानि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! वृतं च त्र्यस्राणि च द्विविधानि, तत्र - - मध्यमवर्ति सर्वार्थसिद्धं वृत्तम् शेषाणि विजयादीनि चत्वार्यपि त्रयस्त्राणि । उक्तंच - ' एगं वह तंसा चउरो य अणुत्तरविमाणा' एकं सर्वार्थसिद्धं ब्रह्मलोक, लान्त, आनत, प्राणत, आरणअच्युत, इन सब कल्पों में भी विमान दो दो प्रकार के हैं और इन सब के सम्बन्ध का वर्णन जैसा यह पूर्वोक्त रूप से इनके सम्बन्ध में किया गया है वैसा ही है परन्तु 'अणुत्तरोववाइया विमाणा दुविहा पण्णत्ता' अनुत्तरोपपातिक देवों के जो विमान है वे दो प्रकार के कहे गये हैं 'तंजहा' वे इस प्रकार है- 'अंग पविट्ठा य आवलिया पविट्ठा य' एक अंग प्रविष्ट और दूसरा आवलिका प्रविष्ट इसमें सौधर्म से लेकर ग्रैवेयक पर्यन्तक में आवलिका प्रविष्ट एवं आवलिका बाह्य विमान है उनके पीछे आवलिका प्रविष्ट विमान होते है 'तत्थणं जे ते आवलिया पविट्ठा तं दुविहा प०' आवलिका प्रविष्ट विमान होते है ये विमान दो प्रकार के है 'बट्टे यतं सा य' एक वृत्त और दूसरे यत्र इनमें जो सर्वार्थ विमान है वह तो वृत्त है और बाकी के चार त्र्यस्त्र है। उक्तंच'एगं वह तंसा चउरो य अणुत्तरविमाणा ।'
પ્રાણત. આરણુ, અચ્યુત, આ બધા કામાં પણ વિમાના બબ્બે પ્રકારના હાય છે. અને આ બધાનુ વર્ણન જેમ પહેલા તેના સંબંધમાં કરવામા આવેલ છે, खेल प्रमाणे छे. परंतु 'अणुत्तरोववाइयविमाणा दुविहा पण्णत्ता' अनुत्तरोपयाति हेवाना ने विभानो छे ते मे हारना उडेवामां आवे छे. 'तं जहा ' तेथे। प्रमाणे छे. ‘अंगप्पविद्वाय आवलियापविद्वाय' अंग प्रविष्ट भने भावसिड प्रविष्ट 'तत्थ णं जे से आवलिया पविट्ठा ते दुबिहा पण्णत्ता' तेमां ने भावसि प्रविष्ट विभान छे. ते विमान मे प्रारना छे. 'वद्वेय वसाय' मे વૃત્ત અને ખીજા ત્ર્યસ્ર તેમાં જે સર્વો સિદ્ધ વિમાન છે તે વૃત્ત-ગાળ છે. मने गाडीना यार यस छेउ विमाणा' हवे आयाम विष्णुंल भने
छे
જીવાભિગમસૂત્ર
- ' एगं वट्टं तंसा चउरोय अणुत्तर परिभाणुनु अथन अश्वामां आवे छे.