Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.१२३ सौधर्मशानादि देवानां समुद्घातनि०११०९ नेन विकुर्वितवन्तो वा विकुर्वन्ति वा विकुर्विष्यन्ति वा सत्यपि शक्तिमत्वे प्रयो जनाऽभावात् प्रकृत्योपशान्तत्वाचेति । 'सोहम्मीसाण देवा केरिसयं साया सोक्खं पञ्चणुब्भवमाणा विहरंति' सौधर्मेशानकल्पयोर्देवाः खलु भदन्त ! कीदृशं सात
'प्रभुर्बुभूषुः सततं विकुवितुं वहून् यथैके स यदा यथेच्छेत् । विकुर्वणा शक्तिरहो उदारा को वर्णयेदस्य प्रभोः प्रभुत्वतू' ॥१॥
यही वात 'विउवित्ता अप्पणा जहिच्छियाई कज्जाई करें ति' इस सूत्रपाठ द्वारा प्रकट की गई है 'जाव अच्चुओ' इस प्रकार से एक रूप की और अनेक रूपों की विकुर्वणा करने की यह बात सनत्कुमार से लेकर अच्युत तक के देवों में कह लेनी चाहिये 'गेविजणुत्तरोववातिया देवा किं एगत्तं पभू विउवित्तए, पुहुत्तं पभू विउव्वित्तए' हे भदन्त ! अनुत्तरोपपातिक देव कया एक रूप की विकुर्वणा करने के लिये समर्थ है या अनेक रूपों की विकुर्वणा करने के लिये समर्थ है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते है-'गोयमा ! एगत्तं पि पुहुत्तं पि, नो चेव णं संपत्तीए विउविसु वा विउव्वंति वा, विउविस्संति वा' हे गौतम ! अनुत्तरोपपातिक देव पूर्वोक्त रूप से एक रूप की भी विकुर्वणा कर सकते हैं और अनेक रूपों की भी विकुर्वणा कर सकते हैं। परन्तु अभी तक न उन्होंने ऐसा किया है, न वे वर्तमान में ऐसा करते हैं और न भविष्य में भी वे ऐसा करेगें । कयोंकि ऐसी शक्ति होने पर भी वे प्रयोजनाभाव से और प्रकृत्या उपशान्त होते हैं।
'प्रभूर्बु भूषुः सततं विकुर्वितु बहून् यथैके स यदा यथेच्छेत् । विकुर्वणाशक्तिरहो उदारा को वर्णयेदस्य प्रभोःप्रभुत्वम् ॥
मा पात 'विउव्वित्ता अप्पणो जहिच्छियं करें ति' मा रीते मे ३५नी અને અનેક રૂપની વિકુર્વણ કરવાનું આ કથન સનકુમારથી લઈને અચુત ४६५ सुधीना हेवोनी समयमा नये. 'गेविज्जणुत्तरोववाइया देवा किं एगत्तं पभू विउवित्तए, पहुत्तं पभू विउव्वित्तए'हे भगवन् ! अनुत्त।५५ति हेर એક રૂપની વિદુર્વણા કરવાને શક્તિમાન છે? અથવા અનેક રૂપની વિકુણા કરવાને शतिमान छ ? २मा प्रश्नाला उत्तरमा प्रमुश्री ४ छ - 'गोयमा ! एगत्तं पि पुहुत्तं पि नो चेव णं सपत्तीए विउव्विसु वा विउव्वंति वा विउविस्सति वा' है गौतम અનુત્તરપપાતિક દેવ પૂર્વોક્ત પ્રકારથી એક રૂકાની પણ વિકુવણા કરી શકે છે અને અનેક રૂપની પણ વિદુર્વણ કરી શકે છે. પરંતુ અત્યાર સુધી તેઓએ તેમ કર્યું નથી તથા વર્તમાનમાં તેમ કરતા નથી. અને એ રીતની શક્તિ હોવા છતાં પણ તેઓ પ્રજનને અભાવ હોવાથી અને પ્રકૃતિથી ઉપ
જીવાભિગમસૂત્ર