Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.१२४ सौधर्मेशानादिदेवानां विभूषादिनि० १११५ सरीराओ य' गौतम ! द्विविधाः प्रज्ञप्ताः तद्यथा-वैक्रियशरीराश्चाऽवैक्रियशरीराश्च । 'तत्थ णं जाओ वेउव्वियसरीराओ ताओ सुवण्णसदालाओ' तत्र खलु याः वैक्रियशरीरवत्यस्ताः सुवर्णशब्दाः नूपुरादिभिः, 'सुवण्णसद्दालाई वत्थाई पवरपरिहियाओ' सुवर्णशब्दवन्ति वस्त्राणि प्रवरपरिहिताः स किङ्किणीकानि प्रवरमत्युद्भट यथा भवति एवं परिहित परिधृतवत्यः । 'चंदाणणाओ चंदविलासिणीओ चंदद्धसमनिडालाओ' चन्द्राऽऽननाः चन्द्रतुल्यमुखयुक्ताः चन्द्रे ये विलासास्तद्वत्यः चन्द्राधसमललाटाः चन्द्रार्धसदृशललाटवत्यः उल्का इव-उद्योतयन्त्यः विद्युद्घानमरीचि दीप्तसूर्यतेजोधिकतरसन्निकाशाः 'सिंगारागार चारुवेका होता है अर्थातू ये दो प्रकार के शरीर वाली होती है 'तं जहा' जैसे -'वेउव्विय सरीराओ य अवेउब्वियसरीराओ य' एक वैक्रिय शरीर वाली और दूसरी अवैक्रिय शरीर वाली 'तत्थणं जाओ वेउव्विय सरी राओ य ताओ सुवण्णसद्दालाओ सुवण्णसद्दालाई वत्थाई पवरपरिहिताओचंदाणणाओ चंदविलासिणीओचंदद्धसमणिडालाओसिंगारागार चारूवेसाओ संगय जाव पासाईयाओ जाव पडिरूवा' इनमें जो वैक्रिय शरीर वाली देवियां हैं वे सुवर्ण निर्मित नपुर आदि के शब्दों से युक्त रहती हैं, किङ्किणी आदि के शब्दों से वाचालित सुन्दर २ वस्त्रों को सुन्दर ढंग से पहिरे रहती हैं इनका मुखमण्डल चन्द्र के जैसा सुहावना बना रहता है भाल इनका अष्टमी के अर्धचन्द्र के जैसा मनोहर होता है चन्द्रमा के जैसा इनका विलास होता है तथा चन्द्रमा के दर्शन से भी अधिक इनका सोमदर्शन होता है ये विजली के जैसी सदा चमकती रहती हैं विजली की सान्द्रकिरणों के तेज से और પ્રકારના હોય છે. અર્થાત્ તેઓ બે પ્રકારના શરીરે વાળી હોય છે. તે जहा' तसा शरी२ २॥ प्रमाणे छे. 'वेउव्वियसरीराओय अवेउव्वियसरीरा. ओय' २४ वैठिय शरीरवाणी मने मील मय शरीरवाणी 'तत्थणं जाओ वेउव्वियसरीराओ ताओ सुवण्ण सद्दालाओ सुवण्णसद्दालाई वत्थाई पवरपरिहि ताओ चंदणाणणाओ चंदविलासिणीओ चंदद्धसमणिडालाओ सिंगारागारचारुवेसाओ जाव पासाइयाओ जाव पडिरूवा' तेमा २ वैठिय शरी२ पाणी क्यिो छे. તેઓ સેના વિગેરેથી બનાવવામાં આવેલ નૂપુર વિગેરેના શબ્દોથી યુક્ત રહે છે. કિંકિણી-ઘુઘરિ વિગેરેના શબ્દોથી વાચા યુક્ત અને સુંદર સુંદર વસ્ત્રોને સુંદર ઢંગથી પહેરી રાખે છે. તેઓના મુખ મંડળો ચંદ્રના જેવા હામણું રહે છે. તેઓનો ભાલ પ્રદેશ આઠમના અર્ધ ચંદ્રના જેવા મનહર હોય છે. તેમના વિલાસ ચંદ્રમાના જેવા હોય છે. તથા ચંદ્રમાના દર્શનથી પણ વધારે સૌમ્ય પ્રકારનું તેમનું દર્શન હોય છે. તેઓ વિજળીની જેમ સદા ચમકતી રહે છે. વિજળીના ગાઢા કિરણોના તેજથી અને પ્રકાશમાન સૂર્યના તેજથી
જીવાભિગમસૂત્ર