Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीवाभिगमसूत्रे यव्यो' अर्थस्तथैव सौधर्मप्रकरणवत् भणितव्यः । 'सणंकुमाराणं पुच्छा०' कुत्र खलु भदन्त ! सनत्कुमाराणां विमानानि ? कुत्र च ते सनत्कुमाराः परिवसन्ति ? 'तहेव ठाणपदगमेणं जाव सणंकुमाररस तओ परिसाओ समिताई तहेव' तथाएव यथा प्रज्ञापना द्वितीयपदस्था भवनपतिवासिनः तेषां यावद्गमेन सनत्कुमारस्य तिस्रः पर्षदः समिताद्याः, भगवानाह-हे गौतम ! सौधर्मकल्पस्योपरिसपक्ष सप्रतिदिशि बहुयोजनानि, बहुयोजनशतानि, बहुयोजनसहस्राणि, बहुयोजनशतसहस्राणि, बहुयोजनकोटी: बहयोजनकोटिकोटीः ऊर्ध्वं दरं व्यतिवज्य अत्र खलु सनत्कुमारो नाम कल्पः प्रज्ञप्तः, समानाः पूर्वाऽपर-दक्षिणोत्तररूपाः पार्था एवपक्षा यत्र दूरमुत्पतने तत्सपक्षम् समानाः प्रतिदिग्विदिशो यत्रेत्यादिनिरवशेषं सौधर्मवत् । 'केवलं द्वादश विमानावासशतसहस्राणि भवे' इत्याद्यातीन पल्योपम की कही गई है 'अट्ठो तहेव भाणियच्यो' बाकी का और सब कथन सौधर्म प्रकरण के जैसा ही जानना चाहिये 'सणंकुमाराणं पुच्छा' हे भदन्त सनत्कुमारों के विमान कहां पर हैं ? और वे सनत्कुमार कहां पर रहते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'तहेव ठाणपदगमेणं जाव सणंकुमारस्स तओ परिसाओ समिताइ तहेव' प्रज्ञापना के द्वितीय पद में भवनवासी देवों के गम के अनुसार सनत्कुमारों के सम्बन्ध में कथन जानना चाहिये तथा च सौधर्मकल्प के ऊपर सपक्ष सप्रति दिशाओं में-पूर्वादि चार दिशाओं में और विदिशाओं में यावत् अनेक कोडाकोडी योजन तक दूर जाने पर पूर्व पश्चिम तक लम्बा और उत्तर दक्षिण तक चौडा आदि विशेषणों वाली सनत्कुमार नाम का एक कल्प है इस में सनत्कुमार देवों के १२ लाख विमान हैं। इनमें पांच विमानावतंसक हैं-पूर्वदिशा में अड़ावतंसक है दक्षिणदिशा में स्फटिकावतंसक है पश्चिमदिशा में रजता४थन सौधम ४२६शुभां ह्या प्रमाणेनु समय से 'सणंकुमाराणं पच्छा' भगवन् सनमान (भाना ४यां पावसा छ ? मने से सन
भार हेव च्या २९ छ ? २॥ प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४ छ -'तहेव ठाण पदगमेणं जाव सणंकुमारस्स तओ परिसाओ समिताइ तहेव' प्रज्ञापन। सूत्रना બીજા સ્થાન પદમાં ભવનવાસી દેવાના ગામના કથન પ્રમાણે સનસ્કુમારોના સંબંધમાંનું કથન સમજી લેવું. તે આ પ્રમાણેસૌધર્મ ક૯પની ઉપર સપક્ષ સપ્રતિ દિશાઓમાં-પૂર્વ વિગેરે ચાર દિશાઓમાં અને વિદિશાઓમાં થાવત્ અનેક કોડા કોડી જન સુધી દૂર જવાથી પૂર્વ પશ્ચિમ સુધી લાંબુ અને ઉત્તર દક્ષિણ સુધી પહેલું વિગેરે વિશેષણવાળું સનકુમાર નામનું એક કલ્પ છે. તેમાં સનકુમાર દવાના ૧૨ બાર લાખ વિમાને છે.
જીવાભિગમસૂત્ર