Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीवाभिगमसूत्रे गंता वालग्गं उव्वेहपरिवुड्डीए पण्णत्ते' पश्चनवति २ वालाग्राणि गत्वा-एक वालाग्रम्-उद्वेधः (गाम्भीर्यम्) परिवृद्धिश्च तथा उद्वेधपरिवृद्धया प्रज्ञप्तम् । 'पंचाणउई २ लिक्खाओ गंता लिक्खा उव्वेह परिवुड्डीए पन्नत्ते' पञ्चनवति २ लिक्षा गत्वा-एका लिक्षा-उद्वेधपरिवृद्धया प्रज्ञप्ता । 'पंचाणउइ २ जवाओ जवमज्ज्ञे अंगुलविहत्थि रयणी कुच्छी धणुगाउय जोयणजोयणसय जोयणसहस्साई गंता जोयणसहस्सं उव्वेहपरिवुड्डीए' एवम्-पञ्चनवर्ति २ यवान् गत्वा यवमध्यान् वालग्गाइं गंता वालग्गं उध्वेह परिवुडीए पन्नत्ते' ९५-९५ वालाग्ररूप स्थानपर जाने पर एक वालाग्र की उद्वेध परिवृद्धि-गहराई की वृद्धि होती है 'पंचाणउतिं २ लिक्खाओ गंता लिक्खाउवेह परियुडीए पन्नत्ते' ९५-९५ लिक्षा प्रमाण स्थान पर जाने पर एक लिक्षा प्रमाण उद्वेध परिवृद्धि होती है 'पंचाणउइ जवाओ जवमन्झे अंगुल विहस्थिरयणी कुच्छी धणुगाउय जोयण जोयणसतजोयणसहस्साई गंता जोयणसहस्सं उध्वेहपरिवुडीए' इसी तरह ९५-९५ यूका प्रमाण स्थान पर जाने पर एक यूका प्रमाण उद्वेध परिवृद्धि होती है० ९५-९५ यवमध्य प्रमाण स्थान पर जाने पर एक यवमध्यप्रमाण उद्वेध परिवृद्धि होती है ९५-९५ अंगुल प्रमाण रूप स्थान पर जाने पर एक अंगुल प्रमाण उद्वेध परिवृद्धि होती है ९५-९५ वितस्ति प्रमाणरूप स्थान पर जाने पर एक वितस्तिप्रमाणरूप उद्वेध परिवृद्धि होती है ९५-९५ रस्निप्रमाण रूप स्थान पर जाने पर एक रत्नि हाथ प्रमाण वालम्गाइं गंता वालगं उव्वेहपरिखुड्ढीए पण्णत्ते' ६५ पयार ८५ पयार વાલારૂપ સ્થાન પર જવાથી એક વાલાઝની ઉઘ પરિવૃદ્ધિ અર્થાત્ ઉંડાઇની वृद्धि थाय छे. 'पंचाणउतिं पंचाणउति लिक्खाओ गंता लिक्खा उव्वेह परिवुड्ढीए पण्णत्ते' ८५ ५॥ ६५ ५॥ lal प्रभार स्थान५२ पाथी ये दीक्षा प्रभा देध परिद्धि थाय छे. 'पंचाणउइ जवाओ जबमझे अंगुलविहत्थि रयणी कुच्छी धणुगाउय जोयण जोयणसतजोयणसहस्साई गंता जोयणसहस्स उन्वेहपरिवुड्ढीए' मे प्रमाणे ६५५८५ या यूछ। प्रभावामा स्थान પર જવાથી એક યુકા પ્રમાણુ ઉશ્કેલ પરિવૃદ્ધિ થાય છે. ૯૫ પંચાણ ૯૫ પંચાણ યવમધ્ય પ્રમાણુવાળા સ્થાન પર જવાથી એક યવમધ્ય પ્રમાણ ઉધ પરિવૃદ્ધિ થાય છે. ૯૫ પંચાણ ૯૫ પંચાણ આંગળ પ્રમાણવાળા સ્થાન પર જવાથી એક આંગળ પ્રમાણ ઉદ્વેધ પરિવૃદ્ધિ થાય છે. ૯૫ પંચાણુ ૯૫ પંચાણ વિતસ્તિ પ્રમાણવાળા સ્થાન પર જવાથી એકવિતસ્તિ પ્રમાણ રૂપ ઉદ્વેધ પરિવૃદ્ધિ થાય છે. ૫ પંચાણ ૯૫ પંચાણું રત્નિ પ્રમાણ રૂપ સ્થાન પર જવાથી એક રત્નિ
જીવાભિગમસૂત્ર