Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीवाभिगमसूत्रे
सव्वओ समता संपरिक्खित्ता' जंबू खलु सुदर्शनाऽन्यैर्वहु भिस्तिलकवृक्षैकुटवृक्षैश्छत्रोपगाशिषादि यावत् - राजवृक्षैः हिंगुवृक्षैर्यावत्सर्वदिक्षु सर्वत्र स्थाने संपरि क्षिप्ता राजते ते च तिलकादयो नन्दिवृक्षाः सर्वर्तुकुसुमफलभारानमितशाखा प्रशाखावन्तो यावत्प्रतिरूपाः एतेऽन्याभि र्बहीभिः पद्मलता यावत् श्यामलताभि र्नित्यं कुसुमित- स्तवकित - गुच्छिताभिः पत्र - पुष्प - फलभारावनताभिर्यावत् प्रति रूपाभिर्मण्डनमण्डिता राजन्ते । 'जंबूए णं सुदंसणाए उवरिं बहवे अ अट्टमंगलगा पन्नत्ता' सुदर्शना जंब्बा उपरि बहून्यष्टावष्टौ मङ्गलकानि प्रज्ञप्तानि 'तं जहा ' तद्यथा - 'सोत्थिय - सिविच्छ०' स्वस्तिक - श्रीवत्साद्याः । तदुपरि-कृष्ण नील पीतलोहितशुक्लचामरध्वजाः छत्रातिच्छत्राणि पताकातिपताकानि प्रज्ञप्तानि । यह जंबूसुदर्शना अन्य अनेक तिलक वृक्षों से, यावत् राज वृक्षोंखिन्नी के वृक्षों से- समस्त दिशाओं में चारों ओर से घिरा हुआ है । ये तिलकादि नंदिवृक्ष सब ऋतुओं में कुसुम और फलों के भार से जिनकी शाखा एवं प्रशाखाएं झुकी रहती हैं ऐसे हैं । यावत् प्रतिरूप हैं । तथा अन्य और भी अनेक पद्मलता यावत् श्यामलताओं से जो कि सर्वदा कुसुमित, स्तबकित, गुच्छित बनी रहती हैं एवं जो पुष्प और फलों के भार से झुकी रहती है यावत् जो प्रतिरूपान्त तक के समस्त विशेषणों से युक्त हैं ये तिलकादिक नन्दिवृक्ष सुशोभित हैं। 'जंबूएणं सुदंसणाए उवरि बहवे अट्ठ २ मंगलगा पन्नत्ता' जम्बूखुदर्शना के ऊपर अनेक आठ २ मंगलक द्रव्य हैं 'तं जहा' वे मंगलक द्रव्य ये हैं 'सोत्थिय, सिरिवच्छ' स्वस्तिक श्रीवत्स आदि इनके ऊपर कृष्ण, नील, पीत, लोहित, शुक्लवर्ण की चामर ध्वजाएं हैं। ये हिंगुरुक्खेहिं जाव सव्वओ समता संपरिक्खित्ता' मा सुदर्शना जील अने તિલકવૃક્ષેાથી યાવત્ રાજવૃક્ષા–રાયણાથી સઘળી દિશાઓમાં ચારે તરફથી ઘેરાયેલ છે. આ તિલક વિગેરે ન ંદિક્ષા બધી જ ઋતુઓમાં કુસુમ અને ફળાના ભારથી જેની શાખાઓ અને પ્રશાખાએ નમી ગયેલી છે એવા છે. યાવત્ પ્રતિરૂપ છે તથા બીજી અનેક પદ્મલતા યાવત્ શ્યામલતાએથી કે જે સદા કુસુમિત સ્તભકિત, શુચ્છિત, બનેલા રહે છે. તેમજ પુષ્પા અને ફળાના ભારથી નમેલ રહે છે. યાવત્ એ પ્રતિરૂપ સુધીના સઘળા વિશેષણાથી યુક્ત छे. या तिस विगेरे नहीवृक्ष सुशोलित छे. 'जंबूएणं सुदंसणाए उवरि बहवे अट्ठट्ठ मंगलगा पन्नत्ता' सुदर्शनानी (५२ भने आई माह मंगसद्रव्यो छे. 'तं जहा' मे भ ंगद्रव्यो मा प्रमाणे छे- 'सोत्थिय सिविच्छ' स्वस्ति श्रीवत्स विगेरे, तेनी उपर कृष्णु, नीस, पीत, सास ने सङ्केतरगनी याभर
જીવાભિગમસૂત્ર