Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीवाभिगमसूत्र बलाहकाः संस्विद्यन्ते-संमूर्च्छन्ति वृष्टिं वर्षन्ति तथा खलु बाह्यसमुद्रेऽपि किम् उदारा मेघा वृष्टि कारिणो भवन्ति इति प्रश्नः ? भगवानाह-'णो इणटे समढे' नायमर्थः समर्थः न तथाऽन्यत्र समुद्रेषु वर्षन्ति । ‘से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चई' तत्-तथा न भवन्ति इति केन कारणेन एवमुच्यते भदन्त ! यत्-'बाहिरगाणं समुद्दा पुण्णा पुण्णप्पमाणा वोलट्टमाणा वोसट्टमाणा समभरघडताए चिटुंति' बाह्याः समुद्राः खलु पूर्णाः पूर्णप्रमाणाः वोसट्टमानाः वोलट्टमानाः समभरघटतया तिष्ठन्ति इति प्रश्ने भगवानाह-'गोयमा ! बाहिरएसु णं समुद्देसु बहवे उदगजोणिया जीवा
और संमुच्छंति, वासं वासंति' हे भदन्त ! जिस प्रकार से लवणसमुद्र में अनेक उदार बलाहक संमूर्च्छना के योग्य होते हैं, संमूर्च्छन जन्म वाले होते हैं और वहां बरसते हैं 'तहा णं बाहिरएसु वि समुद्देसु बहवे ओराला बलाहका संसेयंति संमुच्छंति वासं वासंति' उसी प्रकार से क्या बाहर के समुद्रों में अनेक उदार मेघ समूर्च्छन के अभिमुख होते हैं संमूर्च्छन जन्म वाले होते हैं और क्या वे यहां वरसते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-हे गौतम । 'णो इणढे समटे' यह अर्थ समर्थ नहीं है 'से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ बाहिरगा णं समुद्दा पुण्णा पुण्ण प्पमाणा वोलट्टमाणा वोसट्टमाणा समभरघडत्ताए चिट्ठति' हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि बाहर के समुद्र-लवणसमुद्र के सिवाय अन्य समुद्र-जल से भरे हुए हैं जितना जल उनमें भरा रहना चाहिये उतना जल पूर्णरूप से उनमें भरा रहता है जैसा कि जल से परिपूर्ण भरा हुआ घट होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैंतहाणं बाहिरएसु वि समुद्देसु बहवे ओराला बलाहका संसेयंति संमुच्छंति वास वोसति' हे भगवन् ! 2 प्रमाणे सण समुद्रमा भने भेछ। स भूनने योग्य डाय छे. स भू२७ मा डाय छ, मने त्यो १२से छे. 'तहाणं बाहिरएसु वि समुद्देसु बहवे ओराला बलाहका संसेयंति संमुच्छंति वास वासति' એજ પ્રમાણે બહારના સમુદ્રોમાં અનેક ઉદાર મેઘ સમૂચ્છનના સમીપતિ હોય છે? સંપૂર્ઝન જન્મવાળા હોય છે? અને તેઓ ત્યાં વરસે છે શું? या प्रश्नाना उत्तरमा प्रमुश्री ४ 3-3 गौतम ! 'णो इणठे समठे' मा मथ म।१२ नथी. 'से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ बाहिरगाणं समुद्दा पुण्णा पुण्णप्पमाणा वोलट्टमाणा वोसट्टमाणा समभरघडत्ताए चिटुंति' मावन् ! मा५ मे શા કારણથી કહે છે ? કે બહારના સમુદ્રો પાણીથી ભરેલા છે. જેટલું પાણી તેમાં ભરેલું રહેવું જોઈએ એટલું પાણી પૂર્ણ રીતે તેઓ માં ભરેલું રહે છે. જેમકે પાણીથી પૂરેપૂરો ભરેલ ઘડો હોય છે. આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી
જીવાભિગમસૂત્ર