Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीवाभिगमसूत्रे
त्रीणि पल्योपमानि उत्कर्षेण 'एगूणपण्णराई' दिवाई अणुपालणा' एकोनपञ्चा शात्रिं दिवानि अनुपालना 'सेसं जहा एगोरुयाणं' शेषं नवरम् इत्यादिना यत्कथितं तदतिरिक्तं सर्वमेको रुकमनुजवदेव ज्ञातव्यम् || उत्तरकुरुषु भदन्त ! कति प्रकारका जाति भेदेन मनुष्या वसन्ति ? भगवानाह - हे गौतम ! 'उत्तरकुराएणं कुराए छच्चिहा मणुस्सा अणुसज्जंति' उत्तरकुरुषु खलु कुरुषु जातिभेदेन षडूविधा मनुष्या अनुसज्जन्ति सन्तानेनानुवर्तन्ते इत्यर्थः 'तं जहा ' तद्यथा'पम्हगंधा - मियगंधा - अममा - सहा - तेयाली से -सणिच्चारी' पद्मगन्धाः - मृगगन्धाः - अममाः ममत्वरहिताः - सहनशीलाः, तेजस्विनः-शनैश्चारिणः । अत्रोत्तरकुरु विषयक सूत्र संकलनार्थं संग्रहगाथात्रयं भवति - 'उसुजीवा धणुपुढं भूमीगुम्माइनकी पत्योपम की असंख्यातवें भाग से हीन तीन पल्योपम की है और उत्कृष्ट आयु पूरे तीन पल्योपम की है 'एक्कूण पण्णा रतिं दियाई अणुपालणा सेसं जहा एगरुयाणं' ४९ दिन तक ये अपने पुत्र पुत्री रूप युगल की पालना करते है बाकी का और सब कथन यहां एकोरुक नामके अन्तर द्वीप के कथन जैसा ही है है भदन्त ! उत्तरकुरुओं में जातिभेद को लेकर कितने प्रकार के मनुष्य रहते है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'छबिहा मणुस्सा अणुसज्जंति' हे गौतम! जाति भेद को लेकर ६ प्रकार के मनुष्य रहते हैं 'तं जहा' जैसे पहगंधा, मियगंधा, अममा, सहा, तेली, सणिच्चारी' पद्म जैसी गन्ध वाले पद्मगंध, मृग जैसी गन्ध वाले मृगगन्ध, ममत्व से विहीन हुए अमम, सहनशीलता से युक्त हुए सहा तेज से युक्त हुए, तेजस्वी, और धीरे २ चलने वाले शनैश्वारी, उत्तरकुरु के विषय के प्रतिपादन करने भनी छे. अने उत्ृष्ट आयुष्य पूरा भागु पयोभनु छे. 'एक्कूण पण्णारतिं दियाई अणुपालना सेसं जहा एगोरुयागं' ४८ भोगण पयास निरात सुधी તેઓ પેતાના પુત્રપુત્રી રૂપ યુગનું પાલન કરે છે. ખાકીનુ તમામ અહીંયાં એકેક નામના અંતર દ્વીપના થન પ્રમાણે છે. હે ભગવન્ ઉત્તર કુરૂઓમાં જાતિ ભેદને લઈને કેટલા પ્રકારના મનુષ્યા રહે છે ? આ પ્રશ્નના उत्तरमा अछे - 'छव्वीहा मणुरसा अणुसज्जंति' हे गौतम! लति लेहने सहने छ अारना मनुष्यो रहे छे. 'तं जहा' प्रेम 'पाहगंधा, मियगंधा, अममा सहा, तेली, सणिच्चारी' पद्मना देवी गंधवाजा पद्मगंध, भृगना જેવી ગંધવાળા મૃગગંધ, મમત્વથી રહિત થયેલ અમમ, સહન શીલતા વાળા, સહ, તેજથી યુક્ત થયેલ તેજસ્વી અને ધીરેધીરે ચાલવાવાળા શનૈશ્ચારી
કથન
જીવાભિગમસૂત્ર