Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३. उ. ३ सू.७५ नीलवंतादिह दनिरूपणम्
४३३
वर्णकः (विजयद्वारस्याऽऽलिङ्गपुष्करम् मृदङ्गः इत्यारभ्य मणिस्पर्शान्तं वर्णनमिहावि) 'तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स' तस्य यथावर्णितभवनस्य खलु सम्बन्धिनो बहुसमरमणीय भूमिभागस्य 'बहुमज्झ देसभा ए' बहुमध्यदेश भागे 'एत्थ णं मणिपेढिया पत्नत्ता' अत्र बहुमध्यदेशमागे महत्येका मणिपीठिका प्रज्ञप्ताः कथिता प्रसिद्धाया च - 'पंच धणुसयाई आयाम विक्खंभेणं' भवनपरिसरे पञ्च धनुः शतानि आयामविष्कम्भाभ्यां वर्तते ' अड्डाइज्जाई घणुसयाई बाहल्लेणं' अर्धतृतीयानि धनुः शतानि सार्धद्वि धनुश्शते बाहल्येन - स्थौल्येन 'सव्वमणिमई' सर्वात्मना मणिमयी वेदिकाऽच्छा - श्लक्ष्णा घृष्टा मृष्टा नीरजस्का निर्मला निष्पङ्का निष्कण्टकच्छाया स प्रभा सोद्योता समरीचिका प्रासादीया दर्शनीयाऽभिरूपा लेकर 'जाव मणीनां वण्णओ' इस अन्तिम सूत्र पाठ तक विजयद्वार का वर्णन किया गया है उसी तरह से इसी सूत्र पाठ से लेकर इस अन्तिम सूत्र पाठ तक इस बहुसमरमणीय भूमिभाग का भी वर्णन यहां पर कर लेना चाहिये । 'तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स' उस भवन के बहुसमरमणीय भूमिभाग के 'बहुमज्झदे सभाए ' बहुमध्य देश में 'एत्थ णं मणिपेढिया पण्णत्ता' एक मणिपीठिका है यह मणिपीठिका 'पंचधणुसयाई आयामविक्खंभेणं' लम्बाई चौडाई में पांचसौ धनुष की है। 'अड्डाइज्जाई धणुसयाई बाहल्लेणं' एवं मोटाई में अढाई सौ धनुष की है 'सव्वमणिमयाई' यह सर्वात्मना मणिमय हैं । 'अच्छा श्लक्ष्णा, घृष्टा, मृष्टा, नीरजस्का, निर्मला, निष्पङ्का, निष्कण्टकच्छाया, सप्रभा, सोद्योता, समरीचिका, प्रासादीया, दर्शनीया, अभिरूपा, प्रतिरूपा' वेदिका के वर्णन में इन पदों का भी
'आलिङ्गपुक्खरेइवा' या सूत्रपाठथी सहने 'जाव मणीणां वण्णओ' मा अन्तिम સૂત્રપાઠ પન્ત વિજય દ્વારનું વર્ણન કરવામાં આવેલ છે. એજ પ્રમાણે આ સૂત્રપાઠથી લઈને આ અંતિમ સૂત્રપાઠ સુધી આ બહુસમરમણીય ભૂમિભાગનું वार्जुन पशु अडीयां डरी लेवु' 'तस्स णं बहुसमरमणिज्जरस भूमिभागस्स' से लवनना अडुसभरभणीय लूभिभागना 'बहुमज्झदेसभाए' महु मध्य देशलागभां 'एत्थ णं मणिपेढिया पण्णत्ता' थे! मणिपीडा छे. आ मणिपीठ 'पंच धणु सयाई आयामविक्खंभेणं' पांयसेो धनुषनी संगा पहनाई वाणी छे. 'अड़ाइज्जाई धणुसयाई बाहल्लेणं' अने लडाईमा २५० सढीसो योजननी छे. 'सव्व मणिमयाई' मे सर्वात्मना भणिभय छे. 'अच्छा, लक्ष्णा, घृष्टा, मृष्टा, नीरजस्का, निर्मला, निष्पङ्का निष्कंटकच्छाया, सप्रभा, सोद्योता, समरीचिका, प्रासा - दीया, दर्शनीया, अभिरूपा प्रतिरूपा' वेहिना वर्णानां या यह पशु श्र
जी० ५५
જીવાભિગમસૂત્ર