Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीवाभिगमसूत्रे कृष्ण नीलादिध्वजाश्छत्राऽतिच्छत्राणि [एतत्सर्वं यथावद्वर्णनीयमत्र] 'ते णं पासावडिंसगा' ते खलु प्रासादावतंसकाः, 'अण्णेहिं च उहिं तदधुच्चत्तप्पमाणमेत्तेहिं पासायव.सएहिं' अन्यैश्चतुर्भिः प्रासादावतंसकैस्तदर्बोच्च प्रमाणमात्रैः, 'सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता' सर्वतो दिक्षु समन्ततः सामस्त्येन संपरिक्षिप्ताः । तदर्बोच्चख प्रमाणमेव दर्शयति ‘ते णं' इत्यादि, 'तेणं पासायवडिंसगा' ते खलु प्रासादावतसकाः, 'देसूणाई चत्तारि जोयणाई उड्डूं उच्चत्तेणं' देशोनानि चखारि योजनानि ऊर्ध्व मुच्चत्वेन, 'दो जोयणाई आयामविक्खंभेणं' द्वे योजने आयामविस्ताराभ्याम्, 'अब्भुग्गयमुसिय' भूमिभागा उल्लोया' अभ्युद्गतोत्सृतेत्यादि भूमिभागा इन सब प्रासादावतंसकों के आगे आठ आठ मंगल द्रव्य तथा काली नीली ध्वजाएं एवं छत्रातिछत्र हैं ऐसा भी वर्णन करलेना चाहिये 'ते णं पासायवडिंसगा अण्णेहिं तदधुच्चत्तप्पमाणमेत्तेहिं पासायवडिंसएहिं सवओ समंता संपरिक्खित्ता' ये प्रासादावतंसक भी उन चार प्रासादावतंसकों से आधी ऊंचाइवाले अन्य चार प्रासादावतंसकों से चारों ओर से घिरे हुए है। 'ते णं पासायडिंसगा देसणाई चत्तारि जोयणाई उडूं उच्चतेणं' ये प्रासादावतंसक कुछ कम चार योजन की ऊंचाइ वाले हैं 'दो जोयणाई आयामविक्खंभेणं' और लम्बाई चौडाई इनकी दो योजन की है। 'अब्भुग्गय मूसिय भूमिभागा उल्लोया' इस कथन के अनुसार यहां पर भी ऐसा कहना चाहिये कि ये चार प्रासादावतंसक अपनी ऊंचाई से ऐसे ज्ञात होते हैं कि मानो ये आकाश को ही छू रहे है इनका भूमिभाग समहोने से बहुत हो रमणीय है उल्लोक भी यहां पर है। इनका वर्णन पहिले ही 'उवरिं मंगलगाभूया छत्ताइ छत्ता' २॥ मधारी प्रासादायत सोनी 241311 २08 આઠ મંગલ દ્રવ્ય તથા કાળી નીલી વિગેરે ધજાઓ અને છત્રાતિ છત્ર છે. એ प्रमाणेनु ५५ वर्णन ४२ से. 'ते णं पासायवडिसगा अण्णेहिं तदधुच्चतप्पमाणमेत्तेहि पासायवडिसएहि सवओ समंता संपरिक्खित्ता' से प्रासापती પણ એ ચાર પ્રાસાદાવતં સકથી અધેિ ઉંચાઈવાળા બીજા ચાર પ્રાસાદાવતં કેथी थारे मान्नुस धेशया छ. 'ते णं पासायवडिसगा देसूणाई चत्तारि जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं' से प्रासाह। पत। ४ माछा या२ योजननी यावा छ. 'दो जोयणाई आयाम विक्खभेणं' भने तेनी 5 पडा योगनती छ. 'अन्भुग्गयमूसिय भूमि भागा उल्लोया' २१॥ ॐथन प्रमाणे महीया ५४४ मे કહેવું જોઈએ કે એ ચાર પ્રાસાદાવતંસકો પિતાની ઉંચાઈથી એવા જણાય છે જાણે તેઓ આકાશનોજ સ્પર્શ કરી રહ્યા છે. તેનો ભૂમિભાગ સમહોવાથી
જીવાભિગમસૂત્ર