Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीवाभिगमसूत्रे
त्मानमलङ्कृतविभूषितं कृत्वा, 'दद्दरमलयसुगंधगंधितेहिं गंधेहिं गात्ताई सुकिडति' दर्दर मलय सुगन्धितैर्गन्धैर्गात्राणि सुक्रीडति - स्वलङ्करोति, 'सुक्किडित्ता' - सुक्रीड्य, 'दिव्वं च सुमणोदामं पिणिद्धति' दिव्यश्च सुमनोदाम दिव्यां पुष्पमालां पिनयति - घारयति, 'तणं से विजए देवे'" - ततः खलु स विजयो देवः 'केसालंकारेण वत्थालंकारेण मल्लालंकारेण आभरणालंकारेण केशमनोहरकारकेण - अलङ्कारेण, तथा - वखालङ्कारेण माल्यालंकारेण - आभरणालङ्कारेण, 'चउच्चिहेणं अलंकारेणं अलंकिए विभूसिए समाणे' चतुष्प्रकारकेणाऽलङ्कारेणाऽलङ्कृतो विभूषितश्च सन् अत एव - 'पडिपुण्णालंकारे' परिपूर्णालङ्कारः 'सीहा सणाओ अब्भुट्टे'- सिंहासनादाभ्युत्तिष्ठते सिंहासनादुत्थितो भवतीत्यर्थः । 'अब्भुट्टेत्ता' अभ्युत्थाय, 'अलंकरके 'दद्दरमलयसुगंधगंधितेहिं गंधेहिं गाताई सुविकति' फिर उसने दर्दरमलय चन्दन की सुगंधित गंध से अपने शरीर को अलंकृत किया 'सुक्किडित्ता' इस प्रकार से अपने शरीर को अलंकृत करके 'दिव्वं च सुमणोदामं पिणिद्धति' फिर उसने दिव्य पुष्पमाला को पहिरा 'तएण से विजए देवे' इसके बाद वह विजयदेवने 'केसालंकारेण, वत्थालंकारेणं, मल्लालंकारेण, आभरणालंकारेण चउब्विहेणं अलंकारेणं अलंकिए विभूसिए समाणे' इस के बाद विजय देव ने केशों को मनोहर करने वाले अलङ्कार से, वस्त्रों को सुहावने जचाने वाले अलङ्कार से, एवं मालाओं को भी अलङ्कृत करने वाले अलङ्कार से और आभरणों को भी विशेष रूप से उद्दीपित करने वाले अलङ्कार से इस प्रकार के चार प्रकार वाले अलङ्कारों से जब वह 'पडिपुण्णालंकारे' सम्पूर्ण रूप से सब अलङ्कारों को पहिन चुका तब वह 'सीहासणाओ सुगंधगंधितेहिं गाताई सुक्विडति' ते पछी तेथे ६४रभस्य यहननी सुगंधवाना थंडनथी पोताना शरीरने असत. 'सुक्किडित्ता' मा प्रमाणे पोताना शरीरने असर वा मनावीने 'दिव्यंच सुमणोदामं पिणिद्धति' ते पछी ते हिव्य मेवी पुण्योनी भाजा धारण पुरी 'तएण' से विजए देवे' ते पछी मे विभ्यद्वेवे 'के सालंकारेणं वत्थालंकारेण मल्लालंकारेण आभरणालंकारेण चउ व्विण अलंकियविभूसिए समाणे' ते पछी विनयदेवे देशोने सुंदर अनावવા વાળા અલંકારથી વસ્ત્રોને સુંદર લગાડવાવાળા અલ કારથી તેમજ આભૂષાને પણ વિશેષ પ્રકારથી શાભાવવાવાળા અલંકારથી આ પ્રમાણેના ચાર પ્રકારવાળા माथी पोताने द्विव्य रीते शोलायमान पुरी सीधा भने न्यारे 'पडिपुण्णा लंकारे' स ंपूर्ण पाथी धान अरो पहेरीसीधा त्यार पछी ते 'सीहासणाओ अब्भुट्ठेइ' सिहासन परथी उलो थयो अच्भुट्ठेत्ता' ला थया पछी ते
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જીવાભિગમસૂત્ર