Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
३५२
जीवाभिगमसूत्र गंधोदएणं हाणेति' सुरभितगन्धनलेन स्नपयति, 'गंधोदएण हाणेत्ता' स्नपयित्वा गन्धोदकेन, 'दिव्वाए सुरभिगंधकासाईए गाताई लूहेइ' दिव्यया सुरभिगन्धकाषायिक्या-सुरभितगन्धसारिकया गात्राणि रूक्षयति, जिनप्रतिमायां स्थित जलमपनयति, प्रक्षालयतीत्यर्थः 'गाताई लूहेत्ता' गात्राणि रूक्षयित्वा प्रक्षाल्य 'सरसेण गोसीसचंदणेणं गाताई अणुलिंपइ' अनिर्वचनीयगोशीर्षसहकृत मलयचन्दनेन गात्राणि सर्वतो लिम्पयति, 'गाताई अणुलिंपेत्ता' 'गात्राण्यनुलिप्य, 'जिणपडिमाणं अहयाइ सेताई दिव्वाई देवदस जुयलाई णियंसेई अहताऽपरिमर्दितदिव्यदेवपरिधानयोग्यपट्टवस्त्रयुगलानि जिनप्रतिमाभ्यः समय परिधापयति, 'णियंसेत्ता' परिधाप्य, 'अग्गेहिं वरेहिय गंधेहिय मल्लेहिय अच्चेति'अन्ः हस्तक से प्रमार्जन किया 'लोमहत्थएणं पमजित्ता' लोमहस्तक से प्रमार्जित करके 'सुरभिणा गंधोदएणं पहाणेति' फिर उसने उस प्रतिमा का सुगंधित गंधोदक से अभिषेक किया 'गंधोदएणं ण्हाणेत्ता' गंधोदक से अभिषेक करके फिर उसने 'दिव्वाए सुरभिगंधकासाईए गायाई लूहेई' दिव्य एवं सुरभि गंध से युक्त काषायिक तोलिया से पवित्र छन्ने से उस जिन-कामदेव प्रतिमा के शरीर को पोंछा 'गायाई लूहेत्ता' शरीर के उपर का पानी पोंछ कर 'सरसेण' गोसीसचंदणेणं गायाई अणुलिंपई' फिर उसने गोशीर्ष चन्दन से उसके सारे शरीर पर लेप किया, 'गायाई अणुलिंपेत्ता' शरीर पर लेप करके 'जिणपडिमाणं अइयाई सेताइदिव्वाई देवदूसजुयलाई णियंसेई' फिर उसने अहत अपरिमर्दित श्वेत दिव्य दृष्य युगल उन प्रतिमाओं को पहिराया 'णियंसेत्ता' पहिरा कर 'अग्गेहिं वरेहिय गंधेहिय मल्लेप्रतिमा-महेवनी प्रतिभानु से सोम स्तथी, अमान यु 'लोमहत्थएणं पमज्जित्ता' सोभहस्तथी प्रभान ४२०२. 'सुरभिणा गंधोदएणं ण्हाणेति' ते पछी તેણે તે પ્રતિમા ઉપર સુગંધ વાળા ગંદકથી અભિષેક કર્યો અભિષેક કરીને તે पछी त 'दिव्वाए सुरभिगंधकासाईए गायाइ लूहेई' दिव्य भने सुगन्या थी यति वासथी तेल-महेष प्रतिभाना शरीरने सूझ्यु 'गायाई लूहेत्ता' शरीर उप२नु पाए छीन 'सरसेण गोसीसचंदणेण गायाइं अणुलिपई' ते पछी तेथे आशीष नथी तेना सम्पूर्ण शरी२ ५२ से५ ४: 'गायाई अणुलिंपित्ता' शश२ ५२ खे५ ४शन 'जिणपाडमाणं अइयाई सेत्ताइ दिव्वाई देवदूसजुयलाई णिय सेइ' ते ५७ तेणे महत, ५५रिमदित श्वेत मने दिव्य स व इध्य युगस प्रतिमामाने पराव्यु 'णियंसेत्ता' ५डेरावीन 'अगेहि वरेहिय गंधेहिय मल्लेहिय अच्चेति' पर पड।वीन ते पछी तेरी श्रेष्ठ सुगवाणी वी
જીવાભિગમસૂત્ર