Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.६१ सुधर्मासभायाः वर्णनम् १८५ मनोनिवृतिकरेण गन्धेन सर्वतः समन्तात् आपूर्यमाणास्तिष्ठन्ति । सभायाः खलु सुधर्मायाः अन्तर्बहुसमरमणीयो भूमिभागः प्रज्ञप्तो यावन्मणीनां स्पर्श उल्लोकाः पालता भक्तिचित्राः यावत्-सर्वतपनीयमयोऽच्छो यावत् प्रतिरूपः ।।सू०६१॥ ___टीका-'तस्स णं मूलपासायडिसगस्स'-तस्य खलु मूलप्रासादावतंसकस्य, 'उत्तरपुरत्थिमेणं'–उत्तरपूर्वरयामीशानकोणे, 'एत्थ णं' अत्रोत्तरपूर्वस्यां खलु, 'विजयस्स देवस्स' विजयनाम्नो देवस्य, 'सभा सुधम्मा पन्नत्ता' सभा सुधर्मा नाम्नी प्रज्ञप्ता-कथिता, सा च सभा-'अद्ध तेरसजोयणाई आयामेणं' अर्द्ध त्रयोदश योजनानि-आयामेन दैर्येण, 'छ सकोसाई जोयणाई विक्खंभेणं' षट् सक्रोशानि योजनानि विष्कम्भेण, ‘णव जोयणाई उडूं उच्चत्तेणं' नव योजनान्यूर्व मुच्चैस्त्वेन 'अणेगखंभसतसंनिविट्ठा' अनेकैः स्तम्भानां शतैः सन्निविष्टाः, सा खलु'अब्भुगय मुकयवइरवे दिया' अभ्युद्गताऽधः प्रदेशादारभ्यो यावत् सुष्टु कृता वनेण वेदिका यत्रैवं निर्मिता, 'तोरणवररतियसालभंजिया' तोरणवरे (तोरणे वरा-बा) रचिता शाल भञ्जिका शोभामुद्दिश्यातिरमणी या कृत्रिम पुत्तलिका यत्र सा 'तस्सणं मूलपासायडिंसगस्स उत्तरपुरस्थिमेणं' इत्यादि ॥सू०५९॥
तस्सणं मूलपासायव डिंसगस्स' मूलप्रासादावतंसक की 'उत्तर पुरथिमेणं' ईशानदिशा में 'एत्थ णं विजयस्स देवस्स सभा सुधम्मा पन्नत्ता' विजयदेवकी सुधर्मा नामकी सभा कही गई है 'अद्धतेरस. जोयणाई आयामेणं छ सकोसाइं जोयणाई विक्खंभेणं' यह सभा १२॥ योजन की लम्बी है और ६। योजन की चौडी है 'णवजोयणाई उडं उच्चत्तण' इसकी ऊंचाई नौ योजन की है, 'अणेगखंभसयसंनिविद्या अनेक सैकंडोस्तम्भ उसमे लगे हुए है । 'अब्भुगयसुकयवहरवेदिया'नीचे से लेकर ऊपर तक अच्छी तरह से बनी हुई वेदिका से यह युक्त है 'तोरणवर रतियसालभंजिया' इसके उत्तम-तोरण पर बाहिरी दर
'तस्स णं मूलपासामवडिसगरस उत्तरपुरस्थिमेणं त्यात
टी -'तस्स णं मूलपासायवडिसगस्स' ते भूत प्रासादापत सनी 'उत्तरपरस्थिमेणं' उत्तर पूर्व अर्थात् शान शुभां एत्य णं विजयस्स देवरस सभा सुधम्मा पण्णत्ता' वियवनी सुधा नमानी समा वाम मावेस छ. 'अद्धतेरस जोयणाई आयामेणं छ सक्कोसाइं जोयणाई विखंभेणं' से समा १२॥ सा पार योननी ही छ. मन । सवा ७ याननी पहाणी छे. 'णव जोयणाई उद्धट उच्चत्तण' तेनी या नव योगननी . 'अणेगखंभसयसंनिविद्रा' तमा भने से ४ थालमा खासा छ. 'अभुग्गयसुकयवरवेइया' नीयथा अ५२ सुधा सारी शते मनापेस हाथी त युरत छ. 'तोरणवररतियसालभंजिया' तेन। उत्तम
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જીવાભિગમસૂત્ર